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abhishek rajput

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अप्रैल 1930 में नमक कानून को तोड़ने के लिए तंजौर तट पर एक मार्च का आयोजन किसने किया था?


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अप्रैल 1930 का समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए अन्यायपूर्ण नमक कानून को तोड़ने के उद्देश्य से देश के विभिन्न हिस्सों में कई आंदोलन हुए। इनमें से एक प्रमुख आंदोलन तंजौर तट पर आयोजित किया गया था, जिसका नेतृत्व सी. राजगोपालाचारी ने किया। यह मार्च न केवल दक्षिण भारत में बल्कि पूरे देश में स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना।

 

सी. राजगोपालाचारी का परिचय

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (सी. राजाजी के नाम से प्रसिद्ध) एक महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और समाज सुधारक थे। उनका जन्म तमिलनाडु के सालेम जिले में हुआ था। गांधी जी के घनिष्ठ सहयोगी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में, राजगोपालाचारी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे गांधीवादी विचारधारा के कट्टर समर्थक थे और नमक सत्याग्रह के दौरान तंजौर तट पर मार्च का आयोजन करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।

 

नमक कानून और उसका विरोध

ब्रिटिश सरकार ने भारत में नमक उत्पादन और वितरण पर एकाधिकार स्थापित कर दिया था। इसके तहत भारतीय जनता को समुद्र से नमक प्राप्त करने या उत्पादन करने की मनाही थी। साथ ही, उन्हें महंगे दामों पर सरकार से नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया। यह कानून भारतीय समाज के हर वर्ग, विशेषकर गरीबों के लिए अन्यायपूर्ण था। गांधी जी ने इसे भारतीयों के मौलिक अधिकारों पर हमला माना और इसके खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की योजना बनाई।

 

दांडी मार्च की प्रेरणा

12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक एक लंबी यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा का उद्देश्य समुद्र के किनारे पहुंचकर नमक बनाना और ब्रिटिश सरकार के कानून को तोड़ना था। इस आंदोलन ने पूरे देश में जागरूकता और प्रेरणा का संचार किया। गांधी जी ने अन्य नेताओं को भी अपने-अपने क्षेत्रों में इसी प्रकार के आंदोलन करने का आह्वान किया।

 

तंजौर तट पर नमक सत्याग्रह

दक्षिण भारत में, गांधी जी के आह्वान पर सी. राजगोपालाचारी ने तंजौर तट पर मार्च का आयोजन किया। उन्होंने तिरुचिरापल्ली से वेदारण्यम (तंजौर जिले का एक तटीय क्षेत्र) तक मार्च का नेतृत्व किया। यह यात्रा लगभग 150 मील लंबी थी और इसमें 150 से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

 

मार्च की योजना और तैयारियां

राजगोपालाचारी ने इस मार्च की योजना सावधानीपूर्वक बनाई। उन्होंने गांधीवादी अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करते हुए प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। मार्च का उद्देश्य केवल नमक कानून को तोड़ना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरूकता फैलाना और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ना भी था।

 

मार्च का आरंभ

14 अप्रैल 1930 को तिरुचिरापल्ली से इस मार्च की शुरुआत हुई। इसमें शामिल लोग पारंपरिक धोती और खादी के वस्त्र पहनकर पैदल यात्रा कर रहे थे। उन्होंने गांधी जी के भजन गाए और स्वतंत्रता के नारे लगाए।

 

मार्ग और पड़ाव

मार्च के दौरान, यह समूह कई गांवों और कस्बों से गुजरा। हर जगह लोग बड़ी संख्या में एकत्र होकर इनका स्वागत करते थे। राजगोपालाचारी ने स्थानीय लोगों को ब्रिटिश शासन के दमनकारी नीतियों और नमक कानून की अन्यायपूर्ण प्रकृति के बारे में बताया। उन्होंने यह भी समझाया कि नमक सत्याग्रह न केवल एक आर्थिक मुद्दा था, बल्कि भारतीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक भी था।

 

मार्च का समापन

यह मार्च 28 अप्रैल 1930 को वेदारण्यम तट पर समाप्त हुआ। वहां पहुंचकर राजगोपालाचारी और उनके साथियों ने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। यह कार्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुला विद्रोह था और इसे पूरे दक्षिण भारत में व्यापक समर्थन मिला।

 

ब्रिटिश प्रतिक्रिया और दमन

मार्च और नमक सत्याग्रह ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर दिया। उन्होंने राजगोपालाचारी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, इन गिरफ्तारियों से आंदोलन रुकने के बजाय और तेज हुआ। तंजौर और अन्य क्षेत्रों में लोग बड़ी संख्या में सत्याग्रह में शामिल होने लगे।

 

नमक सत्याग्रह का महत्व

  1. राष्ट्रीय एकता का प्रतीक: तंजौर तट पर आयोजित यह मार्च भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दक्षिण भारत की सक्रिय भागीदारी का प्रतीक बना।
  2. अहिंसक आंदोलन की शक्ति: इसने गांधीवादी अहिंसा के सिद्धांत को दक्षिण भारत में मजबूती से स्थापित किया।
  3. स्वतंत्रता संग्राम को बल: इस मार्च ने ब्रिटिश सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ जनजागरण को मजबूत किया।
  4. स्थानीय नेतृत्व का उदय: राजगोपालाचारी जैसे नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया।

 

राजगोपालाचारी की भूमिका के अन्य पहलू

राजगोपालाचारी ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने और समाज सुधार के लिए कार्य करते रहे। उनकी दूरदर्शिता और नीतियां आज भी प्रासंगिक हैं।

 

निष्कर्ष

अप्रैल 1930 में तंजौर तट पर आयोजित नमक सत्याग्रह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में यह आंदोलन केवल एक कानून के खिलाफ विद्रोह नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ जनता की एकता और संकल्प का प्रतीक था। यह घटना भारतीय इतिहास में साहस, बलिदान और स्वतंत्रता की भावना का एक उदाहरण बनी और यह दिखाया कि किस प्रकार अहिंसा और सविनय अवज्ञा के माध्यम से एक बड़े साम्राज्य को चुनौती दी जा सकती है।

 


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