phd student Allahabad university | Posted on | Education
| Posted on
हमारे हिंदू धर्म में चिन्हों का प्रतीक का बहुत ही महत्व माना गया है। हमारे यहां कुछ भी शुभ कार्य होने से पहले मंगल कार्यों के लिए स्वास्तिक बनाने का विशेष महत्व माना गया है। जैसे कथा पूजा हवन शादी यज्ञ आदि धार्मिक त्योहारों में स्वास्तिक बनाए जाते हैं। स्वास्तिक का अर्थ स्वास्तिक शब्द मूलभूत शब्दों से मिलकर बना हुआ है। सु+ अस धातु से बना है सु का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलम है और अस का अर्थ अस्तित्व एवं सत्ता इसी प्रकाश स्वास्तिक का अर्थ हुआ है ऐसा आज तक जो शुभ भावना से भरा और कल्याणकारी हो.।
और पढ़े- वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ क्या है?
0 Comment
Preetipatelpreetipatel1050@gmail.com | Posted on
स्वास्तिक हमारे जीवन के शुभ कामों में बहुत ही अधिक महत्त्व रखता है! स्वास्तिक का चिन्ह सभी लोग अपने घर, दुकान,मंदिरों में बनाते हैं क्योंकि स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से हमारे जीवन में होने वाले सभी कार कुशल पूर्वक और मंगलमई होगे !स्वास्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है सु+ अस धातु सु का मतलब होता है कल्याणकारी तथा अस धातु का मतलब होता है अस्तित्व एवं सत्ता इस प्रकार दोनों शब्द को मिलकर स्वास्तिक की उत्पत्ति हुई है जो लोगों को सुख शांति समृद्धि प्रदान करता है! दिवाली के दिन इसे रंगोली के रूप में भी मनाया जाता है!
0 Comment
blogger | Posted on
इसका अनुवाद ‘सब ठीक है’ के रूप में किया जाता है। स्वस्तिक को इस प्रकार शुभता और सौभाग्य का प्रतीक समझा जाता है, और इसे नियमित रूप से हिंदू घरों, व्यवसायों, मुद्रित सामग्री, कारों, मंदिरों और आश्रमों में दान किया जाता है।
कई हिंदुओं ने स्वस्तिक के साथ अपने घरों के सामने प्रवेश द्वार की दहलीज को सजाया
विशेष रूप से दीपावली के दौरान, इस साल 30 अक्टूबर को, वे पुराने स्वस्तिकों को धो सकते हैं और उन्हें फिर से लगा सकते हैं, या उन्हें अपनी रंगोली के रूप में शामिल कर सकते हैं (रंगे पाउडर, चावल और अनाज का उपयोग करके एक पारंपरिक कला रूप, या आंगन की जमीन को सजाने के लिए फूल) । अक्सर, स्वस्तिक का निर्माण कृत्रिम रूप से दीयों (मिट्टी के दीपक) की व्यवस्था करके किया जाता है।
इनकी व्याख्या चार वेदों (ऋग, यजुर, समा, अथर्व) के रूप में की जा सकती है, जो कि प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथ हैं। उन्हें जीवन के चार लक्ष्य माना जा सकता है: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष (सही कर्म, सांसारिक समृद्धि, सांसारिक भोग, और आध्यात्मिक मुक्ति)। अंगों की व्याख्या चार ऋतुओं, चार दिशाओं और चार युगों या युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर, काली) के रूप में भी की जाती है।
0 Comment