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महाभारत, भारतीय इतिहास का एक महाकाव्य है, जिसे संजीवनी के रूप में धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। इस युद्ध में पांडवों और कौरवों के बीच संघर्ष ने न केवल भारतीय समाज, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के राजनीतिक, धार्मिक और नैतिक मूल्यों को प्रभावित किया। यह महाकाव्य काल लगभग 5000 से 7000 साल पुराना माना जाता है। हालांकि महाभारत के युद्ध का केंद्र भारत था, लेकिन इस समय के दौरान विभिन्न विदेशी साम्राज्यों का भी अस्तित्व था, जो भारतीय उपमहाद्वीप से संपर्क रखते थे या उनके साथ व्यापारिक और राजनीतिक संबंध थे। इस लेख में हम उन विदेशी साम्राज्यों के बारे में जानेंगे जो महाभारत के समय अस्तित्व में थे।
महाभारत के युद्ध के समय के आसपास यवनों (ग्रीक) का अस्तित्व था। यवनों का भारत के पश्चिमी और उत्तरी पश्चिमी क्षेत्रों में गहरा प्रभाव था। यवनों का प्रमुख स्थान वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में था। यवनों की सबसे प्रसिद्ध शाखा, मसेडोनिया के अलेक्जेंडर महान द्वारा स्थापित की गई थी, लेकिन महाभारत के समय, यह साम्राज्य फिलहाल अस्तित्व में नहीं था। फिर भी, यवनों का संपर्क भारतीय उपमहाद्वीप से था, और कई ग्रंथों में इनका उल्लेख मिलता है।
महाभारत के युद्ध के दौरान, यवनों का प्रभाव मुख्य रूप से व्यापार के क्षेत्र में था। सिंधु घाटी के पास और मकरानी समुद्र के किनारे यवनों के व्यापारिक केंद्र थे। यवन व्यापारी भारतीय वस्त्र, मसाले, और अन्य सामानों के साथ व्यापार करते थे। इसी समय के आसपास, यवनों के एक प्रमुख राजकुमार महाबली के नेतृत्व में यवनों का आक्रमण भारत के पश्चिमी भागों में हुआ था। हालांकि यवन साम्राज्य के अस्तित्व का साक्ष्य महाभारत के समय के दौरान साफ तौर पर नहीं मिलता, परंतु उनकी उपस्थिति निश्चित रूप से भारत के इतिहास का हिस्सा थी।
महाभारत के समय के आसपास पर्शियन साम्राज्य (ईरान) भी अस्तित्व में था। पर्शियन साम्राज्य की स्थापना साइरस महान ने 550 ईसा पूर्व की थी। हालांकि महाभारत का समय इससे पहले का है, लेकिन पर्शियन साम्राज्य का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप में महसूस किया जाता था। पर्शिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ था। पर्शियन साम्राज्य का विस्तार वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सिंधु घाटी के कुछ हिस्सों में था।
पर्शियन साम्राज्य का भारतीय उपमहाद्वीप से प्रत्यक्ष संपर्क महाभारत के युद्ध से पहले के समय में था, जब दारा-ई के नेतृत्व में पर्शिया का साम्राज्य अफगानिस्तान तक फैला था। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें भारतीय ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि महाभारत के आक्षेपों में पर्शियाई जनजातियों का उल्लेख किया गया है।
कुषाण साम्राज्य, जो महाभारत युद्ध के बाद स्थापित हुआ, उसने भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना प्रभाव छोड़ा। यह साम्राज्य 1वीं सदी में भारत में स्थापित हुआ, लेकिन इसके पूर्वजों का संपर्क महाभारत के समय से रहा होगा। कुशाणों ने भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में कई प्रमुख शहरों और साम्राज्यों की नींव रखी। इसके साथ ही व्यापारिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी कुशाण साम्राज्य ने भारतीय सभ्यता के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए।
कुषाण साम्राज्य का स्थायित्व भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में था, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, और उत्तरी भारत के कुछ भाग शामिल थे। इसके माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप का संपर्क सेंट्रल एशिया और मिडिल ईस्ट से हुआ था। कुशाणों के द्वारा बौद्ध धर्म का प्रसार भी हुआ, जो महाभारत युद्ध के बाद का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक योगदान था।
महाभारत युद्ध के समय मिश्र साम्राज्य (जिसे हम मिस्र भी कहते हैं) एक सशक्त साम्राज्य के रूप में अस्तित्व में था। हालांकि इसका सीधा संपर्क भारत से नहीं था, फिर भी विभिन्न व्यापारिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण मिश्र का भारत के साथ परोक्ष संपर्क था। मिश्र साम्राज्य के लोग मसाले, कपड़े, और अन्य वस्त्रों के लिए भारत से व्यापार करते थे। मिश्र के लोग भी भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक धरोहर से परिचित थे।
मिश्र साम्राज्य ने सुमेरियन सभ्यता और अन्य प्राचीन सभ्यताओं से संपर्क रखा था, जो बाद में भारत के प्राचीन उपमहाद्वीप में फैल गए। महाभारत के युद्ध के समय मिश्र में फिरौन के शासन के तहत एक उन्नत और संगठित साम्राज्य था।
महाभारत के समय के आसपास चीन में कई छोटे साम्राज्य और जनजातियाँ निवास करती थीं, लेकिन एक साम्राज्य के रूप में चीन का अस्तित्व अभी उतना सशक्त नहीं था। चीनी सभ्यता के साथ भारत का प्रारंभिक संपर्क 2-3 शताब्दियों बाद हुआ, जब बौद्ध धर्म भारत से चीन में फैलने लगा। हालांकि, महाभारत के समय भारतीय उपमहाद्वीप और चीन के बीच सीधे राजनीतिक संबंध नहीं थे, लेकिन चीन में स्थित विभिन्न जनजातियों के व्यापारिक संपर्क भारतीय क्षेत्रों तक पहुंचे थे।
चीन में उस समय विभिन्न राज्यों का अस्तित्व था, और वहां के लोग बांस, सिल्क, चाय, और अन्य सामग्री का व्यापार करते थे। चीन के कुछ हिस्से भारतीय उपमहाद्वीप से प्रभावित हुए, खासकर व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से। हालांकि इस समय के दौरान चीन में कोई विशाल साम्राज्य नहीं था, फिर भी भारतीय व्यापारियों और यात्रियों ने चीनी क्षेत्रों में अपने संपर्क स्थापित किए थे।
रोमन साम्राज्य, जो यूरोप और मध्य-पूर्व में फैला हुआ था, महाभारत के युद्ध के समय का एक महत्वपूर्ण विदेशी साम्राज्य था। यह साम्राज्य भारत के पश्चिमी क्षेत्रों के साथ व्यापार करता था। भारत से रोम तक रेशम, मसाले, और बहुमूल्य रत्नों का निर्यात होता था, जबकि रोम से भारत में धातु, शराब और अन्य वस्त्रों का आयात होता था।
रोमन साम्राज्य और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच की यात्रा मुख्यतः समुद्री मार्ग से होती थी। रोम और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच व्यापार के कारण दोनों संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान हुआ था, और यह सांस्कृतिक एवं व्यापारिक संपर्क महाभारत युद्ध के बाद और भी गहरा हुआ।
महाभारत युद्ध के समय, भारतीय उपमहाद्वीप और बाहरी दुनिया के बीच कई विदेशी साम्राज्य सक्रिय थे, जिनमें से कुछ का प्रत्यक्ष संपर्क भारत से था और कुछ का परोक्ष। इन साम्राज्यों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर सांस्कृतिक, व्यापारिक, और राजनीतिक प्रभाव डाला था। महाभारत के युद्ध के दौरान, यवनों, पर्शियनों, मिश्रियों और अन्य साम्राज्यों के साथ भारत का संपर्क बढ़ा था, जो भविष्य में भारतीय सभ्यता को प्रभावित करने के साथ-साथ वैश्विक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले थे।
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