2019 चुनावों के लिए राजनीतिक बयानबाज़ी का दौर शुरू हो चुका है। अपनी डफली अपना राग हर नेता और हर राजनीतिक दल अभी से गाने लगे हैं। बात चाहे बिहार में एनडीए के सहयोगी जदयू की करें या महाराष्ट्र में शिवसेना की हर तरफ से मांग एयर पूर्ति की थ्योरी पर कोशिशें तेज़ हो चुकी है। बीजेपी फिलहाल सभी को साथ लेकर और बराबर अहमियत देकर साथ लेने के मूड में है। न किसी को नाराज किया जा रहा है, न किसी की मांग से इनकार किया जा रहा है न ही किसी के भी मांग को पूर्ण समर्थन देकर स्वीकार किया जा रहा है। ऐसे में इसके पीछे यह रणनीति है कि बीजेपी जल्दबाजी नही करेगी न खुद किसी सहयोगी का साथ छोड़ेगी। इसके अलावा अभी वेट एंड वाच की रणनीति ही बीजेपी को हर तरफ से सही लग रही है।
आइये आपको बताएं कि ऐसा क्यों है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है क्षेत्रीय राजनीति का नफा नुकसान। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी यह बात बखूबी जानते और समझते हैं कि देश के अंदर जिस तरह तीसरे मोर्चे या क्षेत्रीय दलों के गठबंधन की बात हवा में तैर रही है वैसे में उसके सहयोगी दलों का साथ बड़ी भूमिका निभाएगा। यह दल बेशक छोटे सहयोगी हैं लेकिन इनके बदौलत बीजेपी को एक बड़ा समुदाय, जाति, वर्ग को समर्थन देता है। उदाहरण के लिए समझें तो जहां रालोसपा की वजह से बीजेपी को कुशवाहा वोट मिलता है वहीं एलजेपी की वजह से दलित और नीतीश की वजह से कुर्मी और पिछड़े वर्ग का वोट बीजेपी के पाले घूमता है। ऐसे में किसी को नाराज करने का मतलब स्थानीय राजनीति में बड़ा नुकसान उठाना होगा।
अब बात करते हैं मोदी और शाह के मास्टरस्ट्रोक की जो 2019 में उनके लिए जीत की राह तैयार करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इनमे से सबसे पहला है एनडीए के सहयोगी दलों को साधे रखना, दूसरा है संपर्क फ़ॉर समर्थन अभियान जो न सिर्फ मीडिया की सुर्खियों में है बल्कि बीजेपी के प्रचार और मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियों के प्रसार में अहम भूमिका निभा एक बड़ा अंतर पैदा कर सकता है, दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रति नरमी और हिंदूवादी एजेंडे में जाति धर्म को साधने के फार्मूला भी हिट हुआ तो बीजेपी को सत्ता में वापसी से रोकना एकजुट होते विपक्ष के लिए मुश्किल होगा। खैर बाकी भविष्य के गर्भ में है।