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क्या भारत के किसी राष्ट्रपति ने कभी किसी अपराधी की पूरी सज़ा माफ कर के उसे बरी करवाया है?


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pravesh chuahan,BA journalism & mass comm | Posted on


प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक किसी भी राष्ट्रपति ने सजा को माफ करके आरोपी बरी नहीं किया है यानी कि अगर आरोपी को मृत्युदंड की सजा मिली है उसको उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया है..ऐसा नहीं है कि सजा माफ करके उसको बरी कर दिया गया है.. सजा माफ होने के बाद आरोपी को जेल में रहना ही पड़ा है.
 
1948 से लेकर 2018 तक 4826 दया याचिकाओं का निपटान हो चुका है.जिनमें से 3257 रिजेक्ट और 1569 में मृत्युदंड को उम्रकैद में बदला गया है. एक भी केस ऐसा नहीं जिसमें मृत्युदंड को पूरी तरह माफ़ करके दोषी को छोड़ दिया गया हो.
 
सबसे ज्यादा दया याचिकाएं खारिज करने का रिकॉर्ड आर वेंकटरमण (1987-1992) के नाम है. उन्होंने 44 दया याचिकाएं खारिज कीं.50 में से उन्होंने 45 याचिकाएं ख़ारिज और 5 स्वीकार कीं
 
जानकारी के मुताबिक, 1991 से 2010 के बीच में जितने भी राष्ट्रपति हुए उनमे से 77 दया याचिकाओं में से राष्ट्रपतियों ने 69 को खारिज कर दिया. यानी कि आर वेंकटरमन जिन्होंने सबसे ज्यादा 44 दया याचिका खारिज की वह दया याचिका खारिज करने के मामले में शीर्ष पर हैं.
 
एपीजे अब्दुल कलाम ने केवल दो याचिकाओं पर फैसला लिया जिसमें से एक को स्वीकार किया और दूसरे को खारिज कर दिया सबसे कम दिया याचिका पर सुनवाई करने वाले राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम है.
 
राजेंद्र प्रसाद ने 181 में से 180 दया याचिकाएं स्वीकार की और केवल 1 को खारिज़ कर दिया. सबसे ज्यादा दया याचिका पर सुनवाई करने वाले और सबसे ज्यादा याचिकाओं को स्वीकार करने वाले वह पहले वाले राष्ट्रपति हैं
 
जाकिर हुसैन ने अपने कार्यकाल में सभी दया याचिकाओं को स्वीकार किया उन्होंने 22 याचिकाओं को स्वीकार करते हुए मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. याचिकाओं के बावजूद भी उन्होंने कोई आज का को खारिज नहीं किया.
 
कुछ ऐसे राष्ट्रपति भी है जिन्होंने किसी भी दया याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की सभी दया याचिकाएं पेंडिंग रखी. इनमें से केआर नारायणन ने सभी दया याचिकाएं पेंडिंग रखीं. यानी फकरुद्दीन अली अहमद और एन संजीव रेड्डी की ही तरह अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका का निपटान नहीं किया.
 

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