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एक इंजीनियर या किसी भी छात्र की हॉस्टल लाइफ कैसी होती है?
एक इंजीनियर या किसी भी छात्र की हॉस्टल लाइफ मे बहुत सी मुश्किले आती है, कभी ख़ुशी तो कभी गम हमें एक बार हॉस्टल लाइफ जरूर जीनी चाहिए। क्योंकि हॉस्टल की लाइफ जीने से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, बाहर की दुनिया मे जाकर बहुत सी नयी -नयी चीजें देखने और सीखने को मिलती है।
आज के बदलते समय के अनुसार अक्सर बच्चे बाहर रहना हॉस्टल मे रहकर पढ़ाई करना ज्यादा पसंद करते है। लेकिन कुछ बच्चो के माता -पिता हॉस्टल जाने के लिये इजाजत नहीं देते है,क्योंकि उनको अपने बच्चो के लेकर टेंशन रहती है कि कही हमारे बच्चे बाहर रहकर गलत संगत मे ना चले जाये। और गलत लोगो के साथ रहकर खान पान भी बिगड सकता है, लेकिन माता -पिता को भी एक बार अपने बच्चो के ऊपर भरोसा करके उनको अपनी ज़िन्दगी जीने के लिये हॉस्टल जरूर भेजना चाहिए।
आईये जानते है कि एक हॉस्टल स्टूडेंट की लाइफ कैसी होती है।
हर एक छात्र का जीवन हॉस्टल आने से पहले काफ़ी अच्छा होता है,लेकिन जैसे ही हॉस्टल पर पढ़ाई करने के लिये आते है। उनके रहन -सहन से लेकर उनके सोने, जगने, खाने पीनेआदि सभी चीजों का तरीका हॉस्टल के बनाये गये नियमानुसार होते है जो नियम हॉस्टल बनाये जाते है उन्ही के अनुसार छात्रों को पालन करके चलना पडता है।हॉस्टल आने से पहले हर बच्चा अपने घर पर खाने को लेकर नखरे करता है कि मम्मी मुझे मूंग दाल, मोटे चवाल, लौकी, कददू सब्जी नहीं पसंद लेकिन जैसे ही हॉस्टल आते है वहां पर जो भी खाने को मिलता है छात्राओ को खाना पडता है। क्योंकि हॉस्टल मे टेस्टी खाना घर जैसे नहीं मिलता है लेकिन जो भी मिलता उसी को खा कर पेट भरना पडता है।
हॉस्टल मे कुछ आने -जाने के नियम बनाये जाते है जैसे कि 10 बजे तक स्टूडेंट हॉस्टल के अंदर हो जाने चाहिए, वरना यदि कोई भी स्टूडेंट 10 बजे के बाद हॉस्टल के अंदर आता है तो हॉस्टल के गेट लॉक हो जायेगे नहीं खुलेंगे। ऐसे मे तो यदि कोई स्टूडेंट लेट हो जाता है तो उसके परेंट्स को तुरंत कॉल करते है ऐसे मे स्टूडेंट के ऊपर हॉस्टल इतने नियम बनाये जाते है जितने खुद के माँ बाप नहीं बनाते नियम अपने बच्चो पर तब जाके सही से बच्चों की अक्ल खुलती है कि माँ -बाप के नियमों पालन करते तो हॉस्टल आके उनको ऐसी सजा नहीं मिलती।
हॉस्टल मे रहने से बच्चो की लाइफ काफ़ी बदल जाती है, वहां पर सोने का फ़िक्सड टाइम 10 बजे होता है और सुबह उठने का समय 6बजे होता है। हॉस्टल लाइफ मे स्टूडेंट दोस्तों, मित्रो यारों के साथ खुश तो होता है लेकिन कही ना कही घर की याद जरूर आती है, अपने मम्मी -पापा, भाई -बहन के साथ बीते हुए पल को बहुत ही ज्यादा मिस करते है, तो रोने लग जाते है ऐसे मे दोस्त मित्र आंसू पोंछने लगते है तथा कई बार नज़ारा देखने लायक होता है कि एक दोस्त दूसरे दोस्त को शांत कराने के चक्कर मे वो भी रोने लग जाता है।
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एक इंजिनियर या किसी भी छात्र की हॉस्टल लाइफ बहुत उलझी हुई होती हैं। एक तो वह अपने घर परिवार से दूर रहता है। उसे वह सारे काम करने पड़ते है जो वह आम तौर पर अपने घर में नही करता वह काम उनकी माँ या बहन कर देती है। उन्हे रूम की झाड़ू लगना पड़ता है। खुद के कपड़े धोना, खाना बनना आदि करना पड़ता है। लेकिन यह भी एक अनुभव की बात है क्यो की हर पल एक अनुभव होता है अच्छा हो बुरा वह जीवन भर याद रहता है।
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आज आपने यहां पर बहुत ही अच्छा सवाल पूछा है कि एक इंजीनियर और छात्र की हॉस्टल लाइफ कैसी होती है इसके बारे में आपको पता होना चाहिए क्योंकि आपको नहीं पता कि कब आपको इस चीज का सामना करना पड़ जाए। वैसे तो हॉस्टल लाइफ काफी उलझी हुई होती है क्योंकि जहां पर हमें सुख और दुख दोनों का सामना करना पड़ता है शुरुआती दौर पर तो हमें इस बात की चिंता लगी रहती है कि हॉस्टल में हमें कैसे दोस्त मिलेंगे कैसा भोजन मिलेगा तथा सोने के लिए बिस्तर कैसा मिलेगा। क्योंकि लोगों के मुंह से सुनने को मिलता है कि हॉस्टल में घर के जैसे खाना,सोना नहीं मिलता है। इसलिए मैं आपको बताना चाहती हु कि हॉस्टल लाइफ में कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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एक इंजीनियर या किसी भी छात्र की हॉस्टल लाइफ मे कई सारी समस्याए आती है, क्योंकि हॉस्टल मे छात्रों के खाने -पीने से लेकर पढ़ाई और उठने तक के सभी नियम हॉस्टल द्वारा बनाये जाते है जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। हॉस्टल लाइफ बहुत ही डिफकल्ट होती है, हॉस्टल मे खाना मे दाल, रोटी, चवाल जो भी रुखा सूखा मिलता है, खाने मे स्वाद रहे या ना रहे सब खाना पड़ता है क्योकि हॉस्टल मे घर जैसे स्वादिष्ट खाना नहीं मिलता है और हॉस्टल के बनाये गये नियमों का पालन करना पड़ता है।
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