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ravi singh

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ब्रिटिश भारत में जीवन कैसा था?


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ब्रिटिश शासनकाल (1757-1947) का भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस कालखंड ने भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ढांचे पर गहरा प्रभाव डाला। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान भारत में जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यापक परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों ने भारतीय जनता के जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव छोड़े। इस लेख में, हम ब्रिटिश भारत में जीवन के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

 

1. आर्थिक जीवन

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से औपनिवेशिक उद्देश्यों के अनुसार ढाल दी गई। इसने पारंपरिक आर्थिक संरचनाओं को कमजोर किया और भारत को एक कच्चा माल आपूर्ति करने वाले देश और ब्रिटेन के तैयार माल के लिए बाजार में बदल दिया।

 

i) कृषि पर प्रभाव
अधिकांश भारतीय ग्रामीण इलाकों में रहते थे और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि थी। ब्रिटिशों ने किसानों पर भारी लगान लगाया और राजस्व प्रणाली में स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) और रैयतवारी (Ryotwari) जैसी नीतियां लागू कीं। इन नीतियों ने किसानों को भारी कर्ज में डाल दिया। अकाल के समय सरकारी उदासीनता के कारण लाखों लोग भूख से मारे गए। 1876-78, 1896-97 और 1943 के बंगाल अकाल ने लाखों जिंदगियां छीन लीं।

 

ii) औद्योगिकीकरण और शोषण
ब्रिटिशों ने भारत में परंपरागत हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया। ब्रिटिश मिलों में बने कपड़ों ने भारतीय बुनकरों को बेरोजगार कर दिया। साथ ही, रेलवे और बंदरगाहों जैसे बुनियादी ढांचे का विकास भारतीय हितों के लिए कम और ब्रिटिश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अधिक किया गया।

 

iii) नगदी फसल प्रणाली
भारतीय किसानों को पारंपरिक फसलों (जैसे चावल और गेहूं) के बजाय नगदी फसलें (जैसे नील, कपास और चाय) उगाने के लिए मजबूर किया गया। यह नीति किसानों के लिए हानिकारक सिद्ध हुई, क्योंकि इससे उनकी खाद्य सुरक्षा समाप्त हो गई।

 

2. सामाजिक जीवन

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज ने गहरी असमानताओं का सामना किया। जातिवाद, धार्मिक भेदभाव और लैंगिक असमानता जैसी समस्याएं ब्रिटिश नीतियों के तहत और अधिक तीव्र हो गईं।

 

i) जाति व्यवस्था
ब्रिटिशों ने जाति व्यवस्था को बनाए रखने और उसका इस्तेमाल अपने शासन को मजबूत करने के लिए किया। जाति-आधारित जनगणना और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की शुरुआत ने जातिगत विभाजन को और गहरा कर दिया।

 

ii) महिला स्थिति
महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए ब्रिटिशों ने कुछ सामाजिक सुधार लागू किए। इनमें सती प्रथा का उन्मूलन (1829), विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856), और बाल विवाह निषेध कानून (1891) शामिल हैं। लेकिन इन सुधारों का प्रभाव सीमित था, क्योंकि भारतीय समाज ने इन्हें व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया।

 

iii) शहरीकरण और नई जीवनशैली
ब्रिटिश शासनकाल में शहरीकरण का विस्तार हुआ। मुंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे शहर आधुनिक व्यापार और प्रशासन के केंद्र बन गए। शहरी क्षेत्रों में पश्चिमी जीवनशैली का प्रभाव बढ़ा, जिससे पारंपरिक भारतीय मूल्यों और संस्कृतियों में बदलाव आया।

 

3. राजनीतिक जीवन

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय जनता पर कोई राजनीतिक अधिकार नहीं था। सत्ता ब्रिटिश अधिकारियों और गवर्नर जनरल के हाथों में केंद्रित थी।

 

i) अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' नीति
ब्रिटिशों ने भारत पर शासन करने के लिए 'फूट डालो और राज करो' (Divide and Rule) की नीति अपनाई। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दिया।

 

ii) भारतीय राजनीतिक चेतना का उदय
ब्रिटिश शासन ने भारतीय जनता में राजनीतिक जागरूकता भी पैदा की। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जो स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख ताकत बनी। धीरे-धीरे भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना शुरू किया, और महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व किया।

 

4. शिक्षा और संस्कृति

ब्रिटिशों ने भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी। लॉर्ड मैकाले की 'अंग्रेजी शिक्षा नीति' के तहत शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया गया। इससे भारतीय समाज में एक नए मध्यवर्ग का उदय हुआ, जो पश्चिमी शिक्षा और विचारधारा से प्रभावित था।

 

i) आधुनिक शिक्षा का प्रभाव
आधुनिक शिक्षा ने भारतीयों को यूरोपीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की जानकारी दी। इससे भारतीय बुद्धिजीवियों में जागरूकता बढ़ी, जिसने सामाजिक सुधार आंदोलनों और राजनीतिक आंदोलनों को प्रेरित किया।

 

ii) साहित्य और कला
इस काल में भारतीय साहित्य और कला में भी परिवर्तन हुआ। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, रविंद्रनाथ टैगोर और प्रेमचंद जैसे लेखकों ने इस समय भारतीय समाज की समस्याओं को अपनी रचनाओं में दर्शाया। इसके साथ ही, ब्रिटिश प्रभाव के कारण वास्तुकला और चित्रकला में भी बदलाव आए।

 

5. स्वास्थ्य और जीवनस्तर

ब्रिटिश शासन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं और जीवनस्तर में मामूली सुधार हुए। हालांकि, यह सुधार मुख्यतः ब्रिटिशों के अपने लाभ के लिए थे।

 

i) स्वास्थ्य सेवाएं
ब्रिटिशों ने अस्पताल और चिकित्सा संस्थान बनाए। प्लेग और चेचक जैसे रोगों के टीके उपलब्ध कराए गए। लेकिन ये सेवाएं मुख्यतः शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित थीं। ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी थी।

 

ii) जनसंख्या पर प्रभाव
अकाल, बीमारियां और उच्च मृत्यु दर के कारण भारतीय जनसंख्या की स्थिति खराब थी। लेकिन रेलवे और संचार साधनों के विकास से आपदा प्रबंधन में मामूली सुधार हुआ।

 

6. धार्मिक और सांस्कृतिक बदलाव

ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय धर्म और संस्कृति पर भी प्रभाव पड़ा। मिशनरियों के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार किया गया। इससे पारंपरिक धर्मों को चुनौती मिली, लेकिन इससे भारतीय जनता में अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति जागरूकता भी बढ़ी।

 

i) धार्मिक सुधार आंदोलन
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में धार्मिक सुधार आंदोलनों का उदय हुआ। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद और दयानंद सरस्वती जैसे नेताओं ने समाज में सुधार लाने के लिए अभियान चलाए।

 

ii) सांस्कृतिक पुनर्जागरण
19वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण हुआ। भारतीय कला, संगीत और नृत्य को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए गए।

 

7. ब्रिटिश शासन के सकारात्मक पहलू

हालांकि ब्रिटिश शासन ने भारतीय जनता के लिए कई समस्याएं पैदा कीं, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी थे:

  • रेलवे, डाक सेवाओं और संचार साधनों का विकास।
  • आधुनिक शिक्षा प्रणाली की स्थापना।
  • कानून और प्रशासनिक ढांचे का निर्माण।
  • महिलाओं और समाज में सुधार के लिए कुछ नीतियां।

 

8. ब्रिटिश भारत में जीवन के नकारात्मक पहलू

ब्रिटिश शासन का उद्देश्य भारत का विकास नहीं, बल्कि ब्रिटेन का आर्थिक और राजनीतिक लाभ था। इसके नकारात्मक पहलू निम्नलिखित थे:

  • भारतीय संसाधनों का शोषण।
  • पारंपरिक उद्योगों का विनाश।
  • किसानों पर भारी कर।
  • सामाजिक और धार्मिक विभाजन।

 

निष्कर्ष

ब्रिटिश शासनकाल भारतीय इतिहास का एक मिश्रित अनुभव रहा। इसने भारत को आधुनिक शिक्षा, संचार और प्रशासनिक तंत्र से परिचित कराया, लेकिन इसकी कीमत भारतीय जनता को भारी शोषण, गरीबी और सांस्कृतिक संकट के रूप में चुकानी पड़ी। ब्रिटिश शासन ने भारत में एक नई राजनीतिक और सामाजिक चेतना को जन्म दिया, जिसने अंततः स्वतंत्रता संग्राम का मार्ग प्रशस्त किया। ब्रिटिश भारत में जीवन संघर्ष, परिवर्तन और आत्म-साक्षात्कार का प्रतीक था, जिसने आधुनिक भारत की नींव रखी।

 


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