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21 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस इस पूरे दुनिया-संसार-पृथ्वी में शांति और अहिंसा की स्थापना करने के लिए हर साल 21 सितंबर को बड़े उत्सव के साथ शांति दिवस मनाया जाता है। इस शांति का संदेश संसार के हर स्थान में पहुंचे। हर छोटी से छोटी जगह में पहुंचे इसलिए शांतिदूत संयुक्त राष्ट्र के द्वारा कला, खेल, संगीत, साहित्य जगत के विश्वविख्यात विभूतियों (हस्तियों) के लिए रखा है।
शांति के लिए शिक्षाः
विश्व के धर्माचार्य शताब्दियों से हमें पढ़ाते रहे हैं कि ईश्वर एक है और हम सब उसकी संताने हैं। अतः हमें एक परिवार के भाई बहनों की तरह शांतिपूर्वक रहना चाहिए। किंतु हम इसे जीवन में चरितार्थ नहीं कर सके। उल्टे
जाति,
धर्म,
रंग,
भाषा,
राष्ट्रीय स्वास्थ्य आदि को लेकर संघर्ष करते रहे।
सुसंस्कृत, शिक्षित और सभ्य होने का दावा करने वाले देशों ने ज्यादा शांति भंग की। मजे की बात यह है कि हम कामना तो शांति की करते है परिवार और शांति बढ़ाने वाला करते हैं। शस्त्रों की होड़ इसका ज्वलंत प्रमाण है।
इसका एक ही कारण हैः
वह यह कि हमने शांति के लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर शांति की संस्कृति का विकास नहीं किया। शांति की शिक्षा से शांति की संस्कृति का विकास कैसे किया जाए मेरे विचार में इसके लिए तीन स्तरों पर आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
प्रथम स्तरः
प्रथम स्तर पर परिवारों में, जिन्हें हम नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहते हैं, यह शिक्षा दी जानी चाहिए। परिवार के सदस्यों को विशेषकर बच्चों को, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श का आध्यात्मिक आधार बताना चाहिए कि ईश्वर एक है और हम सब उसके संताने हैं।
दूसरा स्तरः
दूसरे स्तर पर शांति के लिए शिक्षा की व्यवस्था हमें अपने विद्यालयों / महाविद्यालयों में करनी होगी। इस शिक्षा का प्रारंभ सर्वधर्म प्रार्थना से होना चाहिए। ताकि छात्र - छात्राएं संदेश ईश्वर एक है भले ही हम उसे
गॉड,
अल्लाह,
ईश्वर आदि किसी नाम से पुकारें।
इस प्रकार छात्र-छात्राओं में सर्व-धर्म समभाव एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव जगाना हमारा प्रथम लक्ष्य होना चाहिए।
तीसरा स्तरः
तीसरे स्तर पर हमें शांति कमेटियों के माध्यम से जनता को शांति की शिक्षा देने की व्यवस्था करनी चाहिए। शांति कमेटियों का गठन ग्राम पंचायत स्तर एवं नगर स्तर पर किया जाना चाहिए। इसमें सभी
धर्मों,
जातियों,
रंगों,
वर्गों के स्त्री-पुरुषों का समावेश हो।
इनकी सभाएं वर्ष में एक या दो बार आम जनता के बीच हो। सभाओं में आम जनता के बीच सभी धर्मों, जातियों, रंगो, वर्गों और भाषा भाषियों के बीच समन्वय और सौहार्द्र की आवश्यकता और महत्व बताई जाए।