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14 सितंबरः हिंदी दिवस

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हिंदी दिवस का उद्देश्यः

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम हिंदी दिवस मना रहे हैं। बड़े गौरव की बात है कि 14 सितंबर के दिन सारे भारत में संपूर्ण उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। जिस तरह शिक्षक दिवस, महिला दिवस, मनाया जाता है उसी तरह हिंदी दिवस भी मनाया जाता है, परंतु अन्य भाषाओं का दिवस नहीं मनाया जाता। स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष के पश्चात भी भारत देश के अपनी एक भाषा नहीं है जबकि प्रत्येक स्वतंत्र देश के अपने एक भाषा होती है। जिसके माध्यम से देश का कार्य चलता है देशवासी आपस में संवाद करते हैं उसी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त होता है। किसी भी देश में चाहे कितनी भी भाषाएं क्यों ना बोली जाए पर एक राष्ट्रभाषा का होना अनिवार्य है। जो संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधकर रखें।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा हैः-

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है भाषा उस देश के आत्मा होती है|

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 12,13,14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद जी की अध्यक्षता में लंबी चर्चा के पश्चात् 14 सितंबर को देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी भाषा को राजभाषा, कार्यालय भाषा के रूप में स्वीकारा गया। परंतु ‘हिंदी दिवस’ मनाने का श्रेय “राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा” को जाता है उन्होंने इसे 1954 में जन्म दिवस के रुप में मनाया | और तब से आज तक या हिंदी दिवस, सप्ताह, पखवाड़ा और माह के रूप में - मनाया जा रहा है। इसके बावजूद हिंदी प्रयोग की स्थिति आज भी काम के मामले में उत्साहवर्धक नहीं है। अंग्रेजी आज भी हमारे सिर चढ़कर बोल रही हैं, न हमें मातृ-भाषा का अभिमान है न राष्ट्रभाषा का,

14 सितंबरः हिंदी दिवस

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने कहा है-

निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को भूल,

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल।

सरकारी कामकाजः

सरकारी कामकाज चाहे वह केंद्र सरकार का हो या राज्य सरकार का हिंदी के प्रयोग की भूमिका समाधान कारक नहीं है। हमें चाहिए कि हिंदी का प्रयोग बढ़ाएँ ताकि जनता व सरकार के बीच सौहार्द व सामंजस्य की भावना बढ़ेगी। कार्यालय विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाएँ हिंदी में प्रशिक्षण देने का कार्य करें जहां हिंदी वेबसाइट नहीं है, वहां उसे उपलब्ध किया जाए। सभी अधिकारी व कर्मचारी वर्ग हिंदी में काम करने की क्षमता बढ़ाएं।

इसमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि- हमारा आपसी भाई-चारा व सौहार्द बना रहे देश की एकता और अखंडता को कोई नुकसान ना पहुंचे ग्राहक इसे सहर्ष स्वीकार करें।

संपर्क भाषाः

अब संपर्क भाषा के रूप में इसे देखें तो हमें हिंदी को जन-जन तक पहुंचाना है क्योंकि आज देश इतना सिमट गया है कि हम केवल मातृभाषा के बल पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक नहीं घूम सकते। लोगों के दिलों तक पहुंचने के लिए एक संपर्क भाषा अनिवार्य है।

इस क्षेत्र में हमारे जनसंचार के माध्यम प्रशंसनीय कार्य कर रहें हैं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिका, सिनेमा आज समाज में हम देखें तो युवा वर्ग खुशी से या फैशन के तौर पर हिंदी बोलते हैं। व्यापारी हिंदी बोलते हैं, परंतु यह शहरों तक ही सीमित है, इसे हमें देहातों तक पहुंचाना है। इसके लिए हमें चाहिए कि सभी भाषा की संस्कृति व सभ्यता के साहित्य को हिंदी में रूपांतरित करें उसे हम जन संचार के साधनों द्वारा गांव तक पहुंचाएं। कार्यालयों में प्रादेशिक भाषा के साथ हिंदी का प्रयोग किया जाए।