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हनुमान जी ने लंका को जलाया लेकिन लंका तब भी काली नहीं हुई। इसके पीछे क्या रहस्य है? आइए जानें इसके पीछे की पूरी कहानी के बारे में-
राम और रावण का युद्ध बहुत बड़ा ऐतिहासिक युद्ध था जिसमें रावण (Ravan) की हार होती है। रावण के कुकर्मों की सजा आखिरकार मिल जाती है।
जब माता सीता को रावण ने अपहरण कर लिया तो श्रीराम ने हनुमान और सुग्रीव की मदद से लंका पर आक्रमण किया और रावण का संहार किया था। इस तरह से असत्य पर सत्य की जीत हुई।
रावण की लंका जलाने की कहानी
राम भक्त हनुमान ने एक छलांग में समुद्र को पार करके लंका में कदम रखा। अशोक वाटिका में माता सीता की खोज उन्होंने की और श्रीरामचंद्र जी की स्मृति चिन्ह उन्हें दिया। माता सीता को अपना परिचय दिया और राम जी की सेना के अभियान के बारे में उन्हें बताया। लेकिन इसी बीच रावण के सैनिकों ने अशोक वाटिका में उन्हें देख लिया और इसके बाद हनुमान जी को बंदी बनाना चाहते थे लेकिन बलशाली पवन पुत्र हनुमान ने पूरी वाटिका को उजाड़ दिया।
रावण से उनकी मिलने की इच्छा थी और श्री राम जी का संदेश भी देना चाहते थे इसलिए वे उन सैनिकों के बंधक बन गए। जब रावण के सामने उन्हें पेश किया गया। तो राम-भक्त हनुमान उन्हें चेतावनी दी और कहा यदि तुम अभी भी अपनी गलती के लिए क्षमा मांग लो तो तुम्हें श्री रामचंद्र जी क्षमा कर देंगे।
लेकिन घमंडी रावण ने हनुमानजी की बात नहीं मानी। वह हनुमान जी को दंड देना चाहा लेकिन उसी समय विभीषण ने बड़ी चतुराई से काम लिया और कहा एक वानर की हत्या करना उचित नहीं है। बल्कि उसका प्रिय उसका पूंछ होता है। इसे ही आग के हवाले कर दो। विभीषण तो पहले से जानते थेकि पवन पुत्र हनुमान कोई साधारण नहीं थे बल्कि ईश्वर के अवतार हैं। उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता है।
जब लंका जलने लगी
हनुमान जी के पूंछ पर कपड़े लपेटे गए और उस पर आग लगाई गई। फिर क्या था हनुमान जी ने उछल उछल कर और उड़-उड़ कर पूरी लंका में आग लगा दी। सोने की लंका जलने लगी। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गया। विभीषण के घर को छोड़कर सभी के घर जलने लगे।
लंका जलने के बाद क्यों नहीं हुई काली जानिए रहस्य
कई जगह उल्लेख मिलता है कि लंका के जलने पर लंका काली नही हुई। इसके पीछे रहस्य यह है कि जब हनुमान शजी लंका को अपने पूछ (tail) से जला रहे थे तो देखा कि लंका काली नहीं हो रही है। उन्हें आश्चर्य हुआ और बहुत चिंतित हुए। उन्होंने देखा कारावास के पास एक व्यक्ति था उनसे जब पूछा उन्होंने कहा मैं शनिदेव हूं। मुझे रावण ने यहां पर कैद कर रखा है। जब तक मैं स्वतंत्र नहीं हूंगा। तब तक लंका जलने के बाद भी काली नहीं होगी।
इस रहस्य के बारे में जैसे ही पता चला तो उन्होंने शनि देव प्रणाम किया और उनको स्वतंत्र कर दिया। इसके बाद लंका (Lanka) धूं धूं जलकर काली होने लगी।
शनिदेव ने दिया हनुमान जी को वरदान
जब शनिदेव लंका से स्वतंत्र हो गए हैं तो उन्होंने प्रसन्न होकर हनुमान से कहा कि मुझसे तुम वरदान मांगों, मैं तुम्हें एक वरदान दूंगा। तब हनुमानजी ने कहा कि मेरे भक्तों जो मेरी आराधना पूजा करें उन पर आप कृपा बनाए रखें।
मान्यता है कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में भगवान हनुमान के दर्शन करने से शनि प्रसन्न होते हैं।