Content Writer | Posted on | others
3320 Views
कहते है चिंता चिता समान होती हैं । चिंता हो या चिता हिंदी वर्णमाला के हिसाब से बस एक मात्रा ही किसी भी शब्द का अर्थ बदल देती हैं या फिर कह सकते हैं कि एक मात्रा किसी अर्थ का अनर्थ बना देती हैं । कैसा होता हैं ये शब्दों का फेर बदल ,हिंदी वर्णमाला की सिर्फ़ एक मात्रा से ही इंसान का व्यक्तित्व बदल जाता हैं । अगर कोई इंसान परेशान हैं तो उसकी परेशानी को चिंता नाम दिया जाता हैं,और वहीं दूसरी तरफ कोई इंसान इस धरती को अलविदा कह कर चला जाए तो,उसका इस दुनियाँ का आख़री क़दम उसकी चिता के नाम से जाना जाता हैं ।
कैसी दुनिया हैं,और कैसे हैं उसके बनाए हिंदी वर्णमाला के शब्द ना जाने कब किसका क्या अर्थ और क्या अनर्थ निकल जाए। कहा जाता हैं ज़्यादा चिंता इंसान को उसकी चिता के क़रीब ले जाता हैं । सब कहते है चिंता नहीं करना चाहिए वरना इंसान की उम्र कम हो जाती हैं,पर क्या हम इस बात पर कभी ग़ौर करते हैं के इंसान को चिंता होती क्यों हैं ? क्यों वो उम्र से पहले बूढ़ा हो जाता हैं ? क्यों वो अपनी उम्र से ज़्यादा अपने दिमाग़ में परेशानी लेकर बैठा रहता हैं ?
आज के दौर का इंसान एक ऐसी परेशानी में घिरा हैं जो चाह कर भी उससे दूर नहीं हो सकता। आज के समय में इंसान को अगर कुछ चाहिए तो वो हैं वक़्त । आज के समय में अगर वक़्त साथ हो तो इंसान ख़ुश होता हैं । और अगर उसके पास वक़्त ही ना हो तो वो चाहे कितना भी मेहनत कर ले पर वो अपने लिए सुकून नहीं ख़रीद सकता।
"इस भागती दोड़ती ज़िंदगी में अपनों के लिए वक़्त कहाँ,
जब ख़ुद के लिए वक़्त ना हो तो औरों के लिए वक़्त कहाँ,
माँ की लोरी का अहसास तो हैं पर माँ को माँ कहने का वक़्त कहाँ,
अपने तो बहुत हैं इस दुनियाँ में मगर अपनो को अपना कहने का वक़्त कहाँ,
इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में अपने लिए वक़्त कहाँ ......."
जब किसी बच्चे का जन्म होता हैं ,तब उसको किसी चीज़ का ज्ञान नहीं होता | भूख लगे तो रो देना और जब नींद आए तो सो जाना ,जब मर्जी हो तब जाग जाना | ये एक बच्चे का जीवन होता हैं | किसी बात कि कोई फ़िक्र नहीं होती उनको | जब वो बड़ा होता हैं,तो भी उसको फ़िक्र नहीं होती किसी चीज़ की क्योंकि तब तक उसके साथ उसके माँ-पिता का साथ होता हैं |
"सब कहते हैं माँ का साया बच्चों को जरुरी होता हैं,
पर बिना पिता के नाम के सब कुछ अधूरा होता हैं,
माँ तो बस माँ होती हैं,माँ जैसा कोई न होता हैं,
पर बिना पिता के साये के,सब कुछ सूना सा होता हैं "
जब तक बच्चो के साथ माता-पिता का साथ होता हैं,तब तक बच्चों को किसी भी बात की कोई फ़िक्र नहीं होती | धीरे-धीरे जब बच्चा बड़ा होता हैं ,तब भी माता-पिता को उसकी पढ़ाई को लेकर फ़िक्र बानी रहती हैं | कहने का मतलब ये होता हैं कि जब तक माता-पिता का हाथ बच्चो के सिर पर होता हैं तब तक बच्चों को किसी भी बात कि कोई फ़िक्र नहीं होती | तब तक तो लोग चिंता का अर्थ भी नहीं जानते बस खुश रहना,हस्ते मुस्कुराते रहना ही ज़िंदगी होती हैं |
सभी जानते हैं चिंता इंसान को उसकी चिता के करीब तो ले ही जाती हैं और साथ ही इंसान को उसके अपनों से भी बहुत दूर कर देती हैं | चिंता ,तनाव ,परेशानी इंसान के साथ उसके पूरे जीवन काल तक चलती रहती हैं,और उसके मरणोपरांत ही इंसान की चिंता ख़त्म होती हैं | जितना जीवन हैं ,खुश रहो,ख़ुशी से जियो ,आज कल का कुछ पता नहीं कब क्या हो जाये ,इसलिए खुश रहना चाहिए,सबसे मिलकर रहो ताकि आप जितना वक़्त भी जिए तो आपके अपनों को आपके मरने का दुःख हो अफ़सोस नहीं |