नवरात्रों का पहला दिन माता शैलपुत्री का माना जाता है । आज आपको सबसे पहले नवरात्रे के बारें में बताते हैं । शैलपुत्री के पूजन विधि के बारें में बताते हैं ।
पूजा विधि :-
नवरात्री के पहले दिन घट स्थापना की जाती है और नौ दिन के लिए पूजा घर में देवी स्थापना की जाती है । सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर घर और पूजा स्थल की सफाई करें और इसके बाद स्नान करें । पूजा घर में गंगाजल छिड़क लें और वहां पर आटे से रंगोली बना लें । उसके ऊपर लकड़ी का पटला रखें और उसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा कर उसमें माता दुर्गा की प्रतिमा या चित्र जो आप रखना चाहें रखें । एक तांबे का कलश लेकर उसमें जल भरकर उसके ऊपर आम के पत्ते चारों तरफ लगाएं और उसके ऊपर लाल कपड़े से बंधा हुआ नारियल रखें । अब पूजन शुरू करें । शैलपुत्री का श्रृंगार भूरे रंग से करें और भक्त जन इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें ।
(इमेज -न्यूज़ स्टेट)
व्रत कथा :-
एक बार राजा दक्ष ने हरिद्वार में "बृहस्पति सर्व" नाम का महायज्ञ आयोजित किया । राजा दक्ष ने महायज्ञ में सभी को आमंत्रित किया सिवा भगवान शिव के और इस बात से माता सती बहुत विचलित हुई । भगवान शिव के समझाने के बाद भी माता सती ने यज्ञ में जाने की जिद्द न छोड़ी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी और सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंची । जहाँ पहुँच कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और भगवान शिव की कही बात का बोध हुआ कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए और उनके हुए अपमान पर उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को ख़त्म कर दिया । जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने माता के शव को अपने कंधे पर उठाया और पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने लगे । इस प्रलय जैसी स्थिति को ख़त्म करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के मर्त शरीर के टुकड़े कर दिए । माता सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में लिया । हिमालय की पुत्री को ही शैलपुत्री कहा जाता है।
" ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:" के जाप के साथ पूजन करना अति शुभ माना जाता है । पूजन के बाद माता को भोग लगाकर पूजन सम्पूर्ण करें । शैलपुत्री को साबूदाने की खीर , या चावल की खीर बनाकर भोग लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है ।