2014 में जब बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार और अभी पीएम नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में प्रचार की कमान संभाले हुए थे तब लगातार कश्मीर, आतंकवाद और सीमा पार से सीजफायर की घटनाओं पर लंबी बातें और वादे करते नजर आए थे। लोगों में एक उम्मीद की किरण जगी थी। हालांकि अब आज के परिवेश की बात करें तो हालात और भी बदतर हो चुके हैं। न सीमा पार से आतंकी घटनाएं रुक रही हैं, न सीजफायर उल्लंघन की घटनाओं में कमी आई है। न कश्मीर में शांति नजर आ रही है। न ही सरकार की तरफ से कोई सख्त कार्रवाई के हाल फिलहाल कोई संकेत नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल है क्या हुआ तेरा वादा? कहाँ गया वह इरादा?
सवाल बहुत हैं। देश के अंदर लोगों में गुस्से का ज्वार है। सैनिक लगातार शहादत दे कर सुरक्षा में लगे हैं। सोशल मीडिया से लेकर गांव जवार था या गुस्सा कभी भी ज्वालामुखी का रूप ले सरकार के खिलाफ जा सकता है। अब ज्यादा दूर न जाकर रमजान के पावन महीने से पहले की ही बात करें तो सरकार ने कमोबेश सेना के हाथ बांध दिये। आतंकी घटनाएं बढ़ी। इनमे कोई कमी न आई। गृहमंत्री कश्मीर के पत्थरबाजों को नादान बता बड़ा दिल दिखाते हुए माफ करने की बात कह आए। इसके बाद कल जो हुआ उसने एक बार फिर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए। नीति और नियत दोनो पर शंका व्यक्त की जाने लगी है।
अब आइये बताएं कि ऐसा क्या हो गया? कश्मीर में एक ही दिन में आतंकियों ने एक सैनिक औरंगज़ेब और राइजिंग कश्मीर के संपादक सुजीत बुखारी की हत्या कर दी। बुखारी आतंक के खिलाफ कश्मीर में बड़ी आवाज़ थे। औरंगज़ेब एक हार्डकोर आतंकी के एनकाउंटर के अगुवा थे। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि आतंकी ऐसी किसी भी आवाज़ को दबा देना चाहते हैं जो उनके खिलाफ है। न सेना कश्मीर में सुरक्षित है न आम आदमी, न पत्रकार न कोई और ऐसे में फिर वही सवाल की सरकार ने सेना को किस मजबूरी की वजह से पंगु बना रखा है? हत्या पर हत्या और शहादत पर शहादत के बावजूद कड़ी कार्रवाई और बड़े एक्शन के लिए किस बात का इंतजार किया जा रहा है? अगर यही हालत रहे तो 2019 में सरकार को जवाब देना इस मुद्दे पर भारी पड़ सकता है।