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क्या होते है इलेक्टोरल बॉन्ड जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रोक लगायी है ?


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इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रकार का वचन पत्र होता है, जिसे भारतीय नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकते हैं। यह बॉन्ड उन नागरिकों या कंपनियों को अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान करने का माध्यम प्रदान करता है।

 

पात्रता:

  • केवल वे राजनीतिक दल जो पिछले आम चुनाव में कम से कम 1% वोट प्राप्त करते हैं, वे ही इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा प्राप्त कर सकते हैं।
  • बॉन्ड ₹1,000, ₹10,000, ₹1 लाख, ₹10 लाख और ₹1 करोड़ के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।


वर्तमान स्थिति:

  • सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक और अपारदर्शी वित्तीय उपकरण घोषित किया है।
  • कोर्ट ने इस योजना को अवैध करार दिया है और इसकी वैधता को चुनौती दी है।
  • सभी राजनीतिक दलों को अब चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देनी होगी।
  • दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त चंदे की जानकारी सार्वजनिक करने की भी आवश्यकता होगी।


संभावित प्रभाव:

  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर चिंताजनक बहस पैदा करेगा।
  • इसका राजनीतिक दलों और चुनावी चंदे पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।

 

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ मुख्य आरोप:

  • अपारदर्शिता: बॉन्ड गुमनाम होते हैं, जिससे यह पता लगाना मुश्किल होता है कि चंदा किसने दिया है।
  • ब्लैक मनी: गुमनामी ब्लैक मनी को चुनावी चंदे में बदलने में आसान बनाती है।
  • भ्रष्टाचार: अपारदर्शिता और ब्लैक मनी का प्रवाह राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ा सकता है।

 

निष्कर्ष:

 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावी चंदे में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह राजनीतिक दलों को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में मदद करेगा। 

 

 

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