धर्मो रक्षति रक्षितः का क्या अर्थ है? - letsdiskuss
Official Letsdiskuss Logo
Official Letsdiskuss Logo

Language



Blog

Himani Saini

| Posted on | others


धर्मो रक्षति रक्षितः का क्या अर्थ है?


2
0




| Posted on


Letsdiskuss

 

धर्मो रक्षति रक्षितः: एक गहन विवेचना

हिंदू धर्मग्रंथों में एक प्रसिद्ध वाक्यांश “धर्मो रक्षति रक्षितः” बार-बार उद्धृत किया जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, “जो धर्म की रक्षा करता है, वही धर्म उसकी रक्षा करता है।” यह न केवल भारतीय सभ्यता के नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को अभिव्यक्त करता है, बल्कि मानव समाज के संपूर्ण अस्तित्व के लिए धर्म की भूमिका पर भी प्रकाश डालता है। धर्म केवल पूजा-पद्धति या कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन का संपूर्ण मार्गदर्शन है।

 

यह लेख इस वाक्य के गहरे अर्थ, इसके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक संदर्भ, और आधुनिक जीवन में इसके महत्व को विस्तार से समझने का एक प्रयास है।

 

धर्म का अर्थ

धर्म को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह शब्द केवल धार्मिक आस्थाओं या परंपराओं तक सीमित नहीं है। धर्म का मूल अर्थ है: “धारण करने योग्य”। यह वह सिद्धांत है जो व्यक्ति, समाज, और पूरे विश्व को एक संतुलित स्थिति में बनाए रखता है।

 

मनुस्मृति, महाभारत और भगवद गीता जैसे धर्मग्रंथों में धर्म की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। मनुस्मृति में धर्म के दस गुणों का उल्लेख किया गया है:

 

  1. धृति (धैर्य)
  2. क्षमा (क्षमा करना)
  3. दम (इंद्रियों पर नियंत्रण)
  4. अस्तेय (चोरी न करना)
  5. शौच (शुद्धता)
  6. इंद्रियनिग्रह (इंद्रियों का संयम)
  7. धी (बुद्धिमत्ता)
  8. विद्या (ज्ञान)
  9. सत्य (सत्य बोलना)
  10. अक्रोध (क्रोध न करना)

इससे स्पष्ट होता है कि धर्म केवल बाहरी क्रियाकलाप नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के आंतरिक और बाहरी जीवन को नैतिकता और सदाचार से जोड़ने वाला पथ है। यह समाज और व्यक्ति दोनों के कल्याण के लिए आवश्यक है।

 

"धर्मो रक्षति रक्षितः" का स्रोत और संदर्भ

यह वाक्य महाभारत में वर्णित है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित इस महाकाव्य में धर्म को कई स्तरों पर परिभाषित और व्याख्यायित किया गया है। महाभारत में इस वाक्य का अर्थ समझाते हुए कहा गया है कि धर्म के पालन से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, प्रगति, और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

 

जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों और नैतिक मूल्यों का पालन करता है, तो वह न केवल अपने जीवन को सही दिशा में ले जाता है, बल्कि समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरित करता है।

 

“धर्म” और “रक्षा” का संबंध

इस वाक्यांश के दो भाग हैं: धर्म और रक्षा।

 

1. धर्म की रक्षा

धर्म की रक्षा का तात्पर्य है उसकी मूल अवधारणाओं, सिद्धांतों, और आदर्शों का पालन। जब लोग अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो वे स्वयं धर्म की रक्षा करते हैं। उदाहरण के लिए, सत्य बोलना, परोपकार करना, हिंसा से बचना और दूसरों के प्रति दयालु होना – ये सभी कार्य धर्म की रक्षा करते हैं।

 

2. धर्म हमें कैसे बचाता है

जब हम धर्म का पालन करते हैं, तो इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। धर्म हमें आत्म-निरीक्षण, अनुशासन, और आत्म-संयम सिखाता है। यह समाज में समानता, न्याय और भाईचारे का मार्ग प्रशस्त करता है। जो व्यक्ति धर्म का आदर करता है, उसे समाज और प्रकृति का सहयोग स्वतः मिल जाता है।

 

एक किसान जो ईमानदारी और कठिन परिश्रम से अपने कार्य को करता है, उसे उसकी फसल का भरपूर लाभ मिलता है। यह एक साधारण परंतु गहरा उदाहरण है कि धर्म किस प्रकार व्यक्ति का साथ देता है।

 

महाभारत में धर्म की दुविधा

महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जहां धर्म की परीक्षा और दुविधाएं हर कदम पर दिखती हैं। विशेषकर युधिष्ठिर, अर्जुन और भीष्म के जीवन में “धर्म” को समझने और उस पर चलने का संघर्ष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

 

उदाहरण के लिए, भीष्म पितामह ने राजा शांतनु को दिया हुआ वचन निभाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। लेकिन जब उन्हें कौरवों के पक्ष में खड़े होकर धर्म और अधर्म के बीच निर्णय लेने का समय आया, तो वे अपनी प्रतिज्ञा के कारण निष्क्रिय हो गए। यह धर्म की गहरी दुविधा को दर्शाता है, जहां "धर्मो रक्षति रक्षितः" का पालन करना मुश्किल हो जाता है।

 

अर्जुन ने भी कुरुक्षेत्र के युद्ध में धर्म पर दुविधा का सामना किया। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि धर्म केवल कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह कर्तव्य-पालन से संबंधित है। जब अर्जुन अपने धर्म का पालन करता है, तो वह न केवल अपनी आत्मा को उन्नत करता है, बल्कि मानवता के लिए एक उदाहरण भी स्थापित करता है।

 

आधुनिक युग में "धर्मो रक्षति रक्षितः" का महत्व

आज के समय में, जब विश्व वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी और आधुनिक जीवनशैली के प्रभाव में है, यह वाक्य और अधिक प्रासंगिक हो गया है।

 

1. सामाजिक परिप्रेक्ष्य

आधुनिक समाज में नैतिकता और मूल्य तेजी से क्षीण हो रहे हैं। धन और भौतिक सुख-सुविधाओं की लालसा में लोग सत्य, ईमानदारी और न्याय जैसे मूल्यों को अनदेखा कर रहे हैं। ऐसे में धर्म की रक्षा करना नितांत आवश्यक है।

 

जब हम धर्म के आधारभूत सिद्धांतों का पालन करते हैं, तो हमारा समाज अधिक संगठित और सुरक्षित बनता है। यदि लोग दया, सहिष्णुता, और न्याय के सिद्धांतों को अपनाएं, तो अपराध, असमानता, और संघर्ष स्वतः कम हो जाएंगे।

 

2. व्यक्तिगत जीवन

व्यक्ति-स्तर पर भी यह सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है। आधुनिक युग में तनाव, अवसाद, और असंतोष जैसे मानसिक मुद्दे बढ़ते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि लोग अपने जीवन में नैतिकता और आध्यात्मिकता को दरकिनार कर रहे हैं।

 

अगर व्यक्ति "धर्मो रक्षति रक्षितः" के सिद्धांत को अपनाता है, तो वह आत्म-विश्लेषण और आत्म-सुधार के पथ पर अग्रसर हो सकता है। नैतिकता और कर्तव्यों का पालन उसे आंतरिक शांति और स्थिरता प्रदान करेगा।

 

3. पर्यावरण और प्रकृति

“धर्मो रक्षति रक्षितः” का एक और आधुनिक संदर्भ है पर्यावरण संरक्षण। हमारी प्राचीन संस्कृति ने प्रकृति की पूजा और उसकी रक्षा को धर्म का अनिवार्य हिस्सा माना। आज जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट सामने हैं, यह आवश्यक है कि हम प्रकृति के प्रति अपने धर्म का पालन करें।

 

यदि हम जंगल, नदियों, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करेंगे, तो बदले में प्रकृति भी हमें स्वस्थ और सुरक्षित जीवन प्रदान करेगी।

 

निष्कर्ष: धर्म का सार्वभौमिक संदेश

“धर्मो रक्षति रक्षितः” केवल एक शास्त्रीय कथन नहीं है; यह जीवन की संपूर्ण कला है। यह एक ऐसा मार्गदर्शक है, जो हमें बताता है कि किस प्रकार नैतिकता, कर्तव्य, और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलकर जीवन को अधिक सार्थक बनाया जा सकता है।

 

महाभारत से लेकर वर्तमान समय तक, यह सिद्धांत समय की कसौटी पर खरा उतरा है। धर्म की रक्षा करने का अर्थ है, सत्य, न्याय, और मानवता की रक्षा करना। जब व्यक्ति और समाज इस आदर्श का पालन करेंगे, तभी वास्तविक उन्नति और शांति संभव होगी।

 

इस वाक्य का संदेश है कि धर्म कोई बाध्यकारी नियम नहीं है, बल्कि यह आत्म-सुरक्षा और आत्म-विकास का माध्यम है। व्यक्ति जब अपने जीवन में धर्म के सिद्धांतों को अपनाता है, तो वह न केवल अपनी आत्मा को ऊंचाई पर ले जाता है, बल्कि समाज और विश्व को भी बेहतर बनाता है।

इसलिए, यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम धर्म की सही व्याख्या करें, उसे आत्मसात करें, और अपने कार्यों के माध्यम से उसकी रक्षा करें। तभी यह सिद्धांत हमारे जीवन में सार्थक रूप से लागू होगा।

 


0
0