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Vansh Chopra

System Engineer IBM | Posted on | science-technology


कृत्रिम बुद्धिमत्ता या Artificial Intelligence क्या है और कैसे काम करता है?


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Marketing Manager | Posted on


आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस यानी एआई का मतलब है-- कृत्रिम बुद्धिमत्ता। यानी स्वचालित रूप से सोचने-समझने और फ़ैसला लेने में सक्षम तकनीक। हम अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में जाने-अनजाने कई बार एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जैसे जब हम गूगल मैप इस्तेमाल कर रहे होते हैं, या मोबाइल पर शतरंज वगैरह कोई गेम खेलते हैं। आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस नाम का प्रयोग सबसे पहले 1955 में अमेरिका के एक कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी ने किया, इसलिये उन्हें फ़ादर ऑफ़ आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस कहा जाता है।

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आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस पर अनुसंधान जॉन मैकार्थी से पहले इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर के विकास के साथ 1950 से ही शुरू हो चुका था। फिर जिस एक खोज ने आगे एआई की अवधारणा की नींव मजबूत की वह नॉर्बर्ट वीनर की थी। जिन्होंने यह साबित किया कि इंसानों के सभी बुद्धिमान व्यवहार उनके प्रतिक्रिया तंत्र के परिणाम होते हैं। 'लॉजिक थेओरिस्ट' का विकास भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। न्यूवेल और साइमन द्वारा 1957 में डिजाइन किया गया ये पहला एआई प्रोग्राम कहा जा सकता है। उन्होंने इस तरह जीपीएस यानी जनरल प्रॉब्लम सॉल्वर की खोज की।

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आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस को समझने के लिये इंसानी मस्तिष्क को समझना चाहिये। हमारा दिमाग कोई पैटर्न रीड करने में माहिर होता है। मानव-सभ्यता के विकास में इंसानों की इस क्षमता का अहम योगदान रहा है। इसी क्षमता की मदद से हम इंसानों ने तरह-तरह की खोज की और तमाम मशीनों का आविष्कार किया। और इन मशीनों से अपना करीब हर काम करने लगे। मशीनें धीरे-धीरे इंसानों की प्रतिस्थानापन्न हो गईं। अभी तक यह बात केवल शारीरिक कार्यों तक ही सीमित थी। पर अब आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस के ज़रिये मानव मस्तिष्क संबंधी सोचने-समझने का काम भी मशीनें कर सकती हैं। बल्कि मशीनें कोई भी काम इंसानों से तेज और बिना किसी गलती के कर सकती हैं।

दरअसल आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस कोई वास्तविक बुद्धिमत्ता न होकर डेटा-मैनेजमेंट और मैनीपुलेशन है। इंजीनियरिंग की तमाम शाखाओं, जैसे-- कंप्यूटर इंजीनियरिंग, सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल्स, इलेक्ट्रोनिक्स, रोबोटिक्स, मैथमेटिक्स को एक जगह मिलाकर एआई या आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस का निर्माण किया जाता है। इसका मकसद एक ऐसा कंप्यूटर नियंत्रित रेबोट या सॉफ़्टवेयर बनाना था जो इंसानों की तरह सोचकर किसी समस्या का समाधान निकाल सके।

2017 में गूगल के एआई ने अल्फा-गो खेल में दुनिया के नं. एक खिलाड़ी को हरा दिया। इसके बाद एआई को लेकर दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई। सवाल उठता है कि क्या भविष्य में इंसानों की बनाई मशीनें इंसानों पर ही विजय पा लेंगी। क्योंकि अगर कभी किसी कारणवश एआई का मकसद हमारे लिये अवांछित हो गया, या वह गलत हाथों में पड़ गया तो यह मानव-जाति में तबाही मचा सकता है। यही वज़ह है कि स्टीफन हॉकिंस से लेकर जेफ बेजोस और सुंदर पिचाई तक दुनिया भर के बुद्धिजीवी एआई पर अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं।

स्टीफन हॉकिंग्स एआई के बारे में कहते हैं कि यह तकनीक आने वाले समय में इंसानों को पीछे छोड़ देगी। वहीं एलन मस्क के अनुसार-- आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस दुनिया के लिये सबसे अच्छा भी हो सकता है और सबसे बुरा भी। एमआईटी के प्रोफेसर मैक्स टैगमार्क अपनी किताब-- लाइफ़-3.0 में लिखते हैं कि इस सदी के आखीर तक एआई यानी कृत्रिम-बुद्धिमत्ता मानव को पराजित कर देगी। फिर आगे का भविष्य उसी पर निर्भर करेगा। और मनुष्य उससे सहयोग करने को बाध्य होगा।

जानकारों का मानना है कि भविष्य में एआई तकनीक पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। इस क्षेत्र में असीमित संभावनायें मौज़ूद हैं। यह मानव समाज की नियति का निर्धारक भी हो सकता है।


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