वैसे दोनों में कोई खास अंतर नहीं है , दोनो का ही अर्थ है बुलाना । दोनो में मंत्र धातु प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ मंत्रणा करना अर्थात बात करना, बुलाना इत्यादि होता है परन्तु ध्यान से देखे तो आमंत्रण किसी भी समय किसी भी अवसर पे बुलाने में प्रयोग होता है जबकि निमंत्रण किसी विशेष अवसर पर बुलाने में प्रयोग होता है। न्योता शब्द की उत्पत्ति भी निमंत्रण से तर्कसंगत लगती है ना कि आमंत्रण से जिसका अर्थ होता है किसी बिशेष उत्सव या प्रयोजन पे बुलाना।
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उदाहरण के लिए अगर हमारे समाज में कोई कार्यक्रम होता है, जैसे कोई पूजा या सत्संग या इस तरह का कोई छोटा-मोटा कार्यक्रम हो, तो उसमें लोगों को शामिल होने के लिए आमंत्रण मिलता है। लोग आते है, उसमें कार्यक्रम में हिस्सा भी लेते है और फिर कुछ देर बाद वापस चले जाते हैं। यहाँ आने की अनिवार्यता बिल्कुल भी नहीं होती है।
जबकि अगर समाज में किसी की शादी या विवाह हो तो उसमें मेहमानों का एक लिस्ट बनती है और उन सारे मेहमानों को निमंत्रण पत्र भेजा जाता है। अगर व्यक्ति बहुत खास रहा तो निमंत्रण पत्र के साथ एक आदमी भी भेजा जाता है, जो सम्मानपूर्वक उस खास व्यक्ति को साथ लेकर वापस भी आएगा। जिन मेहमानों को निमंत्रण मिला हो, उनके स्वागत-सत्कार की विशेष व्यवस्था भी होती है। कुल मिलाकर अगर समझा जाये तो निमंत्रण एक औपचारिक बुलावा है, जहाँ आने की अनिवार्यता के साथ साथ व्यवहारिकता भी बहुत जरुरी होती है।