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अपेक्षा और उपेक्षा दो अलग अलग शब्द है और इनमे उतना ही अंतर् है जितना किसी की प्रशसा करने या अपमान करने में होता है .......!
अपेक्षा का अर्थ होता है किसी से कोई उम्मीद रखना
उदाहरण :- उसेअपने बेटे से बहुत अपेक्षाएं है !
उपेक्षा का अर्थ होता है किसी का अपमान करना
उदाहरण :- हमे किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए !
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अपेक्षा और अपेक्षा में अंतर बहुत ही अंतर होता है दोनों एक दूसरे से अलग होते हैं यह एक दूसरे के विलोम शब्द होते हैं l आईए जानते हैं अपेक्षा और अपेक्षा में क्या अंतर होता है l
अपेक्षा का मतलब उम्मीद करना होता है l
तथा उपेक्षा का मतलब इग्नोर करना या ध्यान ना देना होता है l अपेक्षा का विलोम उपेक्षा होता है l अपेक्षा में उम्मीद की जाती है और उपेक्षा में तिरस्कार किया जाता है l
अपेक्षा का मतलब तुलना करना - राम हरि की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है l
आशा करना - तुमने मेरे साथ जो व्यवहार किया मुझे इसकी अपेक्षा नहीं थी l
उपेक्षा- उचित सम्मान ना देना, महत्व न देना l
मोहन की बातों पर कोई ध्यान नहीं देता l सब उसकी उपेक्षा करते हैं l इन दोनों वाक्य में बहुत ही अंतर है अपेक्षा और उपेक्षा दोनों ही अलग होते हैं l
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अपेक्षाअर्थात किसी से उम्मीद करना, जब हम किसी से बहुत मन से जुड़ते है तो वहाँ से हीअपेक्षा शुरू हो जाती है। अपेक्षा कोई भी किसी से भी कर सकता हैं जैसे - माता पिता बच्चों से, पत्नी अपने पति से, शिक्षक अपने विधार्थियो से, प्रेमी अपनी प्रेमिका से, जनता अपने प्रतिनिधित्व करने वाले से । अपेक्षा किसी से भी हो जाती हैं यह स्वभाविक गुण है। लेकिन कहते है ना किसी से ज्यादा अपेक्षा नही करना चाहिए यह कष्टदायी हो सकता है। क्योकि मनुष्य का गुण है अपने मन के अनुसार कार्य ना होने पर वह दुखी होता है क्योकि वह अपेक्षा ज्यादा करता है।
अब बात करते हैउपेक्षाकी जिसका अर्थ होता है- किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान की अनदेखी करना या इंग्नोर करना।यह उपेक्षा का शिकार कोई ना कोई व्यक्ति अपने जीवन काल में अवशय बनता है। अपेक्षा यदि संतुलित हो तो वह कामयाब बनाता है, वहीउपेक्षामनुष्य को अंधकार की तरफ ले जाता हैं। उपेक्षा एक तरह की विकृति है।
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