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manish singh

phd student Allahabad university | Posted on | others


सोमनाथ मंदिर का इतिहास क्या है?


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सोमनाथ का मंदिर भारत में गुजरात नामक प्रदेश में स्थित है भारत का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर है इस मंदिर को भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था इस मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर भगवान शिव की बहुत ही धूमधाम के साथ पूजा पाठ की जाती है। कहते हैं कि चंद्रदेव का नाम सोम था और भगवान शिव को अपने आराध्य मानते थे और यहां पर तपस्या करते थे अभी से इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा। कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर मे स्थित शिवलिंग हवा में उड़ती है। Letsdiskuss


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सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जो 12 ज्योतिर्लिंगों से स्थापित है या गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र के समुद्र के किनारे स्थित मंदिर है। और इस मंदिर के बारे में ज्यादातर लोग महाभारत श्रीमद्भगवद्गीता, महिमा पुराणों, आदि में बताया गया है। कहां गया है कि चंद्र देव का नाम सॉन्ग था उन्होंने भगवान शिव को स्वामी मानकर तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम सोमनाथ रखा गया है कहते और सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग शक्ति हवा में स्थित है। यह मंदिर भूमंडल के दक्षिण एशिया भारतवर्ष में पश्चिम छोड़कर गुजरात नामक प्रदेश में स्थित है और इस मंदिर को इतिहासिक शिव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.।Letsdiskuss


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गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र-तट पर स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी मानव सभ्यता। ऋग्वेद में भी इसका वर्णन आता है और महाभारत में भी। कभी यह प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। कहते हैं इसी क्षेत्र में जरा नामक व्याध्र का तीर भगवान् श्रीकृष्ण के तलवे में लगा था। जिससे उनकी इहलीला समाप्त हो गई थी।

सोमनाथ मंदिर की स्थापना चंद्र देव ने पौराणिक काल में की थी।सके पीछे एक रोचक कथा है। कि प्रजापति दक्ष की सत्ताइस कन्यायें थीं। जिन्हें हम सत्ताइस नक्षत्रों के रूप में जानते हैं। दक्ष की इन सभी सत्ताइस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। पर चंद्र देव का अनुराग इनमें से एक रोहिणी पर बहुत ज्यादा था। बाकी छब्बीस पत्नियों का वह महत्व नहीं था। अपनी यह व्यथा उन्होंने अपने पिता दक्ष से कही। तब प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाया।

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पर रोहिणी के मोह में डूबे चंद्रमा पर दक्ष की सिखावन का कोई असर न पड़ा। उन्होंने अपना वही रवैया बरकरार रखा। आखिरकार कुपित होकर दक्ष ने उन्हें क्षयरोग से ग्रस्त हो जाने का श्राप दे दिया। और चंद्र देव तत्काल प्रभाव से क्षतिग्रस्त हो गये। चंद्रमा पर यह संकट आते ही अनवरत धरती पर सुधा और शीतलता बरसाते रहने का उनका कार्य बाधित हो गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।

तब देवताओं ने मिलकर चंद्रमा को शापमुक्त करने के लिये ब्रह्मा जी से प्रार्थना की। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि वे तो चंद्रमा को दक्ष के शाप से मुक्त नहीं कर सकते। पर यदि चंद्रदेव अन्य देवों के साथ मिलकर पवित्र प्रभास क्षेत्र में एक शिवलिंग स्थापित करें और मृत्युंजय भगवान् शिव की उपासना करें तो शापमुक्त हो सकते हैं। और इस तरह क्षयरोग से भी।

ब्रह्मा जी के कहे के अनुसार चंद्रदेव ने प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग की स्थापना करके दस करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इस पर प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उन्हें वरदान दिया। और कहा कि मेरे इस वरदान से तुम शापमुक्त तो हो ही जाओगे साथ ही प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी होगी। उन्होंने चंद्रमा से कहा कि कृष्ण-पक्ष के आधे माह में रोज तुम्हारी एक-एक कला क्षय होती जायेगी। पर इसी तरह शुक्ल-पक्ष में रोज एक-एक कला बढ़ती जायेगी और तुम पूर्णत्व को प्राप्त करोगे। इस तरह चंद्रदेव को दक्ष के शाप से मुक्ति मिली। और वे अपना कार्य पूर्ववत् करने लगे। लोगों को राहत मिली।

शापमुक्त होकर चंद्रदेव ने भगवान् शिव से प्रार्थना की कि लोक-कल्याणार्थ आप माता पार्वती के साथ आकर यहीं निवास करें। भगवान् शिव ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। और कहते हैं कि तभी से भगवान् शिव पार्वती माता के साथ इस प्रभास क्षेत्र में आकर रहने लगे। चूंकि चंद्रमा का एक नाम सोम भी है इसलिये इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा।

यह शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में पहले स्थान पर है। ऐतिहासिक सूत्रों के मुताबिक सोमनाथ मंदिर को छः बार आक्रमणकारियों द्वारा लूटा गया। इस मंदिर का उल्लेख ईसा के पहले से होता आया है। सबसे पहले 725 ई. में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने सोमनाथ मंदिर को तुड़वा दिया था। फिर 815 ई. में प्रतिहार सम्राट नागभट्ट ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1024 में गजनी के शासक महमूद गजनवी ने इस मंदिर को लूटा और तहस-नहस कर दिया।

गजनवी के आक्रमण के बाद 1093 के आसपास गुजरात के राजा भीमदेव, मालवा के राजा भोज और सिद्धराज जयसिंह के योगदान से सोमनाथ मंदिर फिर से बना। इसके बाद 1168 ई. में विजयेश्वर कुमार पाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार की सहायता से इस मंदिर का सौंदर्यीकरण हुआ।लेकिन सन् 1297 में जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला बोला तो सोमनाथ मंदिर को एक फिर से तोड़ दिया गया। और मंदिर की सारी धन-संपदा लूट ली गई। इसे हिंदू राजाओं द्वारा फिर से बनवाया गया। पर 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को तोड़ा और वहां की सारी संपदा लूट ली। और इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमदशाह ने भी ठीक यही काम किया। फिर क्रूर मुस्लिम शासक औरंगजेब के समय में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया। एक सन् 1665 में और फिर 1706 ई. में। इसके बावज़ूद जब उसने देखा कि लोग अब भी वहां पूजापाठ करने आ रहे हैं तो अपनी सेना भेजकर मंदिर में कत्लेआम भी कराया। फिर धीरे-धीरे समय बदलता गया और जब ज्यादातर क्षेत्र मराठों के कब्जे में आ गया तब 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया।

अंग्रेजी शासनकाल से आज़ाद होने के बाद 1950 में गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल हाथ में लेकर सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। जिससे छः बार तोड़े जा चुके इस मंदिर का कैलाश महामेरु शैली में फिर से निर्माण किया गया। आज जो सोमनाथ मंदिर हम देखते हैं वह सरदार पटेल की ही देन है। जिसे एक दिसंबर 1994 को भारतीय राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया।

सोमनाथ मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप तीन हिस्सों में बंटा है। इसका शिखर 150 फुट ऊंचा है। जिस पर रखे कलश का भार करीब दस टन है। और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। मंदिर से जुड़े अबाधित समुद्री मार्ग त्रिष्टांभ के संबंध में माना जाता है कि यह दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होता है।


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