शिव तांडव स्तोत्र पढ़ने का सही समय क्या है इसको जानने से पहले हम थोड़ा भगवान शिव के बारें में जानते हैं और साथ इस बात को जानते हैं कि उनके नृत्य को ताण्डव क्यों कहा जाता है | जैसा कि इस बात को सभी जानते हैं कि भगवान शिव अजन्में हैं, अर्थात उनका जन्म नहीं हुआ | पर क्या कभी किसी ने यह सोचा कि धरती में यह कैसे संभव है, कि जिनका जन्म न हुआ हो फिर भी इस दुनिया में हो ? बड़ी ही आश्चर्यजनक बात है न, पर ये सच है | भगवान शिव अजन्में हैं |
आज आपको बताते हैं, भगवान जब जन्में नहीं तो ये आये कहाँ से ?
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव की उत्पत्ति प्रकर्ति से हुई है | प्रकर्ति सिर्फ भगवान शिव की ही नहीं बल्कि भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों की माँ हैं | प्रकर्ति से ही भगवान शिव का जन्म मान सकते हैं, और यहीं पर यह बात भी सिद्ध हो जाती है, कि भगवान शिव अजन्मे हैं |
अब आपके सवाल पर आते हैं, शिव तांडव क्या होता है और इसको पढ़ने का सही समय क्या है आपको बताते हैं | इस शिव तांडव की मान्यता है कि "शिव के परम भक्त रावण ने अपने पुरे बल से कैलाश पर्वत ही उठा लिया और वह पुरे कैलाश पर्वत को ही लंका में ले जाने लगा था परन्तु भगवान शिव ने उनका अभिमान तोड़ने के लिए अपने पैर के अंगूठे को दबाकर कैलाश पर्वत को वापस से स्थिर कर दिया था |
इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वो दर्द से चिल्लाने लगा | "शंकर-शंकर" यहां शंकर शब्द का अर्थ क्षमा से है , इसलिए भगवान शिव को शंकर भी कहा जाता है, और वह भगवान शिव की स्तुति करने लगा | इस स्तुति को ही शिव तांडव कहा जाता है और इस स्तुति से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपना एक अंश रावण को कैलाश ले जाने को दे दिया |
शिव की स्तुति करने का सही प्रतिदिन सुबह के समय और प्रदोष काल (महीने की 13 वीं तिथि जब चन्द्रमा दिखाई देता है ) में इसका पाठ करना बहुत लाभकारी होता है |
(Courtesy : haribhoomi )