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फरवरी में आये बजट 2021-22 में भारत सरकार द्वारा लगभग बारह लाख करोड़ रूपयों का कर्ज़ लिये जाने की बात की गई है। सितंबर 2020 तक देश पर कुल सार्वजनिुक ऋण 10704293.66 करोड़ रूपये का था। यानी करीब 107 लाख करोड़ रूपये। इसमें आंतरिक कर्ज़ 97.46 लाख करोड़ और बाहरी ऋण लगभग 6.30 लाख करोड़ रूपयों का है। सनद रहे कि सार्वजनिक ऋण में केंद्र व राज्य सरकारों की कुल देनदारी आती है जिसका भुगतान सरकार की समेकित निधि या फंड से किया जाता है। चूंकि सार्वजनिक खर्च में जन-स्वास्थ्य, शिक्षा और आधारभूत संरचना आदि मदों पर व्यय की जाने वाली अच्छी-खासी धनराशि शामिल होती है इसलिये सरकार का खर्च अमूमन उसकी आय से अधिक ही रहता है। नतीजतन सरकार को विभिन्न स्रोतों से कर्ज़ लेना पड़ता है। ऐसे ऋण सरकार आंतरिक अथवा बाहरी दो तरह से ले सकती है। आंतरिक कर्ज़ का स्रोत देश के भीतर होता है जबकि बाहरी ऋण विदेशों से लिये जाते हैं।
आंतरिक ऋण --
आंतरिक ऋण सरकार द्वारा देश के बैंकों, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंड्स, कॉरपोरेट्स या रिज़र्व बैंक जैसे संस्थानों के ज़रिये लिया जाता है। गोल्ड-बाँड, मार्केट स्टैबलाइज़ेशन बाँड, ट्रेज़री-बिल, स्मॉल सेविंग स्कीम्स, कैश मैनेजमेंट बिल या फिर स्पेशल सिक्योरिटीज़ की बिनाह पर आने वाला धन एक ऋण के रूप में ही सरकार के पास आता है। सरकार कर्ज़ लेने के लिये ज्यादातर सरकारी प्रतिभूतियों का इस्तेमाल करती है।
बाहरी व विदेशी कर्ज़ --
पिछले मार्च में रिज़र्व बैंक द्वारा ज़ारी आंकड़ों के मुताबिक भारत का विदेशी कर्ज़ बढ़ते हुये 570 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। यह 2021 के दौरान जीडीपी का 21.1 फीसदी था और इससे एक साल पहले जीडीपी का 20.6 प्रतिशत। भारत के विदेशी ऋण में वाणिज्यिक ऋण सैंतीस फीसदी के साथ सबसे बड़ा हिस्सा रखता है। फिर देश के कुल विदेशी ऋण का करीब एक चौथाई हिस्सा सरकार प्रवासी जमा धन के ज़रिये प्राप्त करती है। इसके अलावा हमारी सरकार विदेशों से अल्पकालीन व्यापार ऋण भी प्राप्त करती है।
बाहरी ऋण --
भारत सरकार अपनी कुल आय का 18-19 फीसदी विदेशी कर्ज़ के भुगतान में खर्च करती है। बाहरी ऋण भारत सरकार अपने मित्र देशों, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी विश्व-बैंक या फिर एनआरआई ऋण के रूप में ले सकती है। इसमें नुकसान ये है कि ऋण का पुनर्भुगतान विदेशी मुद्रा में ही करना होता है। जिससे हमारे विदेशी मुद्रा कोष में कमी आती है। हालांकि इसके लिये सरकार द्वारा 'इंटरनैशनल फ्लोट बाँड्स' भी ज़ारी किये जाते हैं जिससे सरकार के पास भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा आ सकती है। साथ ही सरकार इन बाँड्स पर ब्याज का भुगतान भारतीय मुद्रा में करके विदेशी मुद्रा भी बचा सकती है।
सरकार का बजट से बाहर कर्ज़ लेना --
ऐसे सरकारी ऋण कुछ सार्वजनिक कंपनियों या सरकारी संस्थानों को दिये गये ऋण या फिर डेफर्ड-पेमेंट के रूप में होता है। इसलिये इसका ज़िक्र सरकार द्वारा पेश सालाना आम बजट में कहीं नहीं होता। इसका असर राजकोषीय घाटे पर नहीं माना जाता। हालांकि व्यवहार में ये कर्ज़ विभिन्न संस्थानों को सरकारी निर्देश पर ही दिये जाते हैं पर इसे चुकाने की कोई प्रत्यक्ष जिम्मेदारी सरकार की नहीं बनती।
इस तरह के कर्ज़ों में जैसे कि अभी पिछले वर्ष राशन की सब्सिडी का आधा ही एफसीआई को अपनी तरफ से मुहैया कराया। बाकी की करीब आधी धनराशि उसे 'स्मॉल सेविंग फंड्स' से उधार लेने को कहा गया। इसी तरह से फर्टिलाइज़र सब्सिडी का काफी हिस्सा सरकारी बैंकों द्वारा ऋण के रूप में दिलाया जाना भी इसी तरह का सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष तौर से ऋण लिया जाना ही है।
इस तरह साफ है कि सरकार के पास सार्वजनिक ऋण के रूप में पैसे जुटाने के कई माध्यम हैं। वह देश में स्थित संस्थानों के ज़रिये आंतरिक कर्ज़ या फिर विदेशी मुल्कों और विश्व-बैंक आदि से बाहरी ऋण भी प्राप्त कर सकती है। इसके अलावा सरकार देश के विभिन्न सार्वजनिक संस्थानों को बीच में रखते हुये उनके नाम पर भी अप्रत्यक्ष तौर पर ऋण पा सकती है।
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भारत पर कुल सार्वजानिक कर्ज 1,07,04,293.66 करोड़ रूपये का है। भारत का आंतरिक कर्ज 97.46लाख करोड़ तथा बाहरी कर्ज 6.30 लाख करोड़ रूपये का होता है। सार्वजनिक कर्ज मे केंद्र तथा राज्य सरकारो की कुल देनदारी आती है,जिसका भुगतान सरकार द्वारा समेकित के फंड द्वारा किया जाता है ।सरकार का खर्चा हमेशा आय से ज्यादा होता है। सरकार दो प्रकार का लोन लेती है आंतरिक तथा बाहरी। सरकार द्वारा आंतरिक कर्ज देश के अंदर से लिया जाता है, तथा बाहरी कर्ज सरकार विदेशो से लेते है।सरकार द्वारा आंतरिक कर्ज बैंको,बीमा कम्पनीयों,रिजर्व बैंक,कॉरपोरेट कंपनियों तथा म्यूचुअल फंडों आदि से लेते है।
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