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हम जानते ही है की भारत काव्यों, ग्रंथो से भरा हुआ है। ग्रंथो को पढ़कर हम सिख लेते है। लेकिन एक ऐसा ग्रंथ भी है जो भारत में पूरी तरह से निलम्बित है। भारत सरकार ने इस ग्रंथ को बैन कर रखा है। हालाँकि अब यह ग्रंथ कहा है इसका कोई ठिकाना नही है।
नीलवंती ग्रंथ इस ग्रंथ के बारे में कई सारी बाते कही गई है। कहा जाता है कि यह ग्रंथ शापित है। जो कोई भी इस ग्रंथ गलत इरादो से पढ़ता है वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है या वह पागल हो जाता है।
कहा जाता हैं की यह ग्रंथ 1733 मे लिखा गया था। इसे मुंशी भवानीदास की पुत्री नीलावंती ने लिखा था। इसलिए इस ग्रंथ का नाम नीलावंती ग्रंथ पडा।
कहते है नीलावंती ग्रंथ को जिसने जान लिया उसने काल को जान लिया। इसको पड़ने के बाद व्यक्ती पेड़ पौधे, पशु पक्षियों सभी की भाषा समझ सकता है।
इसमे आयुर्वेद, गढ़े हुए खजाने, भूत प्रेत, तंत्र मंत्र, ज्योतिषी, रत्न विद्या और ना जाने किन किन विषयो की जानकारी दी गई है।
ऐसा भी कहा जाता हैं कि उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में मुंशी भवानीदास और उनकी पुत्री नीलवंती रहते थे।
निलवंती सभी बच्चों से अलग थी। वह बहुत ही शक्तिशाली और बाहरी दुनिया से मिलती थी।
वह पेड़ पौधे, पशु पक्षियों सभी से बात कर सकती थी । तंत्र मंत्र भी उसे आते थे और भूत प्रेत, पिशाचो को देख सकती थी। वह जो भी महसूस करती थी उसे पीपल के पत्ते की किताब पर लिख देती थी। निलवंती एक यक्षणी थी। उसने उस किताब में इतना कुछ लिख दिया था के वह खुद नही जानती थी। अपने पिता के अच्छे गुणों के कारण उस किताब का कोई गलत फायदा ना उठा सके उस किताब को उसने शापित कर दिया था कि जो भी व्यक्ति इसे गलत इरादो से पढेगा वह मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा या पागल हो जायेगा ।
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