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लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था। प्यार से मनु बुलाते थे। उनकी माता का देहांत तभी हो गया था जब वे तीन वर्ष की थीं। नन्हीं मनु का लालन-पालन उनके पिता मोरोपंत ने किया। मनु पेशवा परिवार के बालकों के साथ खेलती-कूदती बड़ी हुई।
मनु जब को बड़ी हुई तो उनका विवाह राजा गंगाधर राव के साथ हुआ। वे झांसी के राजा थे। इस प्रकार वह झांसी की रानी बन गई और उनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई हो गया। उनका एक पुत्र हुआ परंतु वह कुछ ही दिन जीवित रहा इससे गंगाधर राव को इतना सदमा लगा कि वे परलोक सिधार गए।
उस समय भारत के बहुत बड़े भाग पर अंग्रेजों का अधिकार था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने सन् 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी।
इस लड़ाई को स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध कहा जाता है।
रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से ग्वालियर किले के सामने भीषण लड़ाई हुई। रानी ने घोड़े की लगाम को दाँतों में दबाया और दोनों हाथों से तलवार चलाते हुई अंग्रेजी सेना के भीतर घुस गई। उस समय रानी का छोटा सा दत्तक पुत्र उनकी पीठ पर बंधा था। रानी वीरता और साहस से लड़ रही थीं। परंतु केवल वीरता कहां तक काम आती। लड़ाई में रानी मारी गई और वह वीरगति को प्राप्त हो गई। लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथाएं देश भर में फैल गई।
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
सारे भारत में उनकी प्रशंसा के गीत आज में गाए जाते हैं
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मार्च 1858 में, रोज़ की सेना झाँसी पर उतरी, और योद्धा रानी ने युद्ध में अपनी सेना का नेतृत्व किया। आखिरकार, झांसी का प्रतिरोध लड़खड़ा गया, और रानी अपने दत्तक पुत्र के साथ पास के एक शहर में डेरा डाले हुए रात में भाग गई। मई में अंग्रेजों ने शहर पर हमला किया, और रानी के नेतृत्व में भारतीय सैनिक हार गए। वह अन्य विद्रोही नेताओं के साथ रणनीतिक रूप से स्थित ग्वालियर किले को लेने के इरादे से, इस बार फिर से ग्वालियर भाग गई।
उसी वर्ष जून में, अंग्रेजों का प्रकोप ग्वालियर पहुंचा, और यहीं पर झांसी की रानी की हार हुई। अन्य विद्रोही नेताओं ने ग्वालियर पर हमले की तैयारी के लिए उसके सुझाव को नहीं सुना था, और किला 16 जून, 1858 को गिर गया। रानी अगले दिन एक बड़ी भारतीय सेना की कमान संभाल रही थी जब वह युद्ध में मारा गया था। विद्रोही सैनिकों का मनोबल गिरा और ग्वालियर छोड़ दिया; यह सभी के लिए निर्विवाद था कि रानी की मृत्यु ने भारतीय विद्रोह के अंत को चिह्नित किया।
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दोस्तों आज हम इस पोस्ट में आपको बताएंगे की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो के बीच अंतिम लड़ाई कहां हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो के बीच काफी समय तक लड़ाई चलती रही। रानी के भयंकर प्रहारों से अंग्रेजों को पीछे हटना ही पड़ा और लड़ाई ग्वालियर में 17 जून को खत्म हुई थी। आपने सुना ही होगा कि खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। इसी युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई की भी मृत्यु हो गई। और 18 जून 1857 को उनका देह संस्कार किया गया।
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झांसी की रानी यानी की रानी लक्ष्मी बाई के बारे में तो आप सभी ने सुना ही होगा और सुना भी क्यों नहीं होगा क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई एक बहुत ही बहादुर रानी थी रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था। आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो की आखिरी लड़ाई कब हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो के बीच काफी लंबी लड़ाई चली थी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच ग्वालियर में 17 जून को आखिरी लड़ाई हुई थी जिसमें सभी अंग्रेज मारे गए थे लेकिन अंत में रानी लक्ष्मीबाई को भी अपने प्राण त्यागने पड़े।
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Preetipatelpreetipatel1050@gmail.com | Posted on
रानी लक्ष्मीबाई गंगाधर की पत्नी थी। जिन्होंने गंगाधर की मृत्यु के बाद पूरे झांसी के राज्य को संभाला था। झांसी की रानी की अंतिम लड़ाई अंग्रेजों के साथ 18 जून 1858 को ग्वालियर के फूलबाग नामक स्थान पर हुई थी। जिसमें लड़ते-लड़ते लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई थी। और यही वह स्थान हैैैैैैै जिसको आज लक्ष्मी बाई कॉलोनी के नाम सेेेेेेे जाना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई अपनी वीरता के लिए बहुत ही मशहूर थी। जिन्होंनेेेेेेेेे अंग्रेजों का डट कर सामना किया और आखरी दम तक उनसे लड़ती रही है।
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