सभी जानते है भारतीय सिनेमा इतिहास की कई मशहूर फिल्म्स है जिनमे से से एक फिल्म है मुगल-ए-आजम | जो अपने समय की सबसे प्रसिद्द फिल्म रही है | इस फिल्म के दर्जनों किस्से मशहूर हैं | जो लोगो ने सुने है | निर्देशक आसिफ ने इस फिल्म को बनाने में जितना समय लिया उस फिल्म से लेकर फिल्म के संगीत तक ने अपने समय मे धमाल मचा कर रखा हुआ था | इस फिल्म का संगीत नौशाद साहब ने तैयार किया था |
संगीत पक्ष से जुड़े दो किस्से तो बहुत ही मशहूर हैं | पहला जब के आसिफ ने नौशाद को पैसों से भरा बैग दिया था और नौशाद साहब ने गुस्से में पैसे हटा दिए थे | इसके बाद जब बड़े मान मुनौव्वल के बाद वो तैयार हुए तो बड़े गुलाम अली खान फिल्म में गाने को तैयार नहीं थे |
उन्होंने मना करने की बजाए बहुत बड़ी रकम मांग दी थी, जिसके लिए के.आसिफ तैयार हो गए |
इस फिल्म में नौशाद साहब ने राग दरबारी, राग दुर्गा, राग केदार और राग रागेश्री जैसी शास्त्रीय धुनों के आधार पर गाने तैयार किए थे | जब प्यार किया तो डरना क्या, प्रेम जोगन बन के, मोहे पनघट पे, मोहब्बत की झूठी कहानी पर रोए जैसे गाने आज भी संगीत प्रेमियों के दिलो दिमाग में ताजा हैं | इस फिल्म के संगीत पक्ष की एक और खास बात थी कि जाने माने सारंगी वादक पंडित रामनारायण ने इस फिल्म के गानों में सारंगी बजाई थी |
चूंकि नौशाद साहब ने ही बैजू बावरा का संगीत भी तैयार किया था इसलिए उन दोनों की नजदीकियां भी थीं | विजय भट्ट ने जब ‘मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे’ गाना सुना तो आपत्ति दर्ज कराई | उनका कहना था कि " एक मुगल बादशाह को हिंदुओं का त्योहार होली मनाते देखना दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे , इस बात को लेकर बवाल भी हो सकता है " नौशाद साहब ने उनकी इस बात को नकारते हुए अपनी बाते राखी,और साथ ही उन्होंने स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स का ऐसा ताना-बाना बुना कि वो गाना तार्किक लगने लगे |