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Himani Saini

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भारत का संविधान किसने लिखा और इसमें कितनी धाराएँ हैं?


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1. प्रस्तावना

भारतीय संविधान, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह न केवल भारत की राजनीतिक संरचना को निर्धारित करता है, बल्कि यह देश के नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों की भी स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करता है। भारतीय संविधान का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के मूल सिद्धांतों पर आधारित हो। यह एक ऐसा दस्तावेज है जो भारतीय समाज की विविधता और उसकी जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जानेंगे कि भारत का संविधान किसने लिखा और इसमें कुल कितनी धाराएँ हैं।

 

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2. भारतीय संविधान का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारतीय संविधान का निर्माण स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में हुआ था। जब भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की, तब देश को एक मजबूत और समावेशी संविधान की आवश्यकता थी। यह संविधान न केवल भारतीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा करता है, बल्कि यह देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को भी स्थापित करता है।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारतीय नेताओं ने यह महसूस किया कि एक ऐसा संविधान आवश्यक है जो सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करे। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन नेताओं ने विभिन्न विचारधाराओं का समन्वय करते हुए एक ऐसा संविधान तैयार करने का संकल्प लिया जो स्वतंत्रता के बाद भारत को एक मजबूत लोकतंत्र बना सके।

 

3. संविधान सभा का गठन

संविधान सभा का गठन 1946 में हुआ था, जिसमें 389 सदस्य शामिल थे। इस सभा का उद्देश्य एक ऐसा संविधान तैयार करना था जो स्वतंत्र भारत की आवश्यकताओं को पूरा करे। संविधान सभा में विभिन्न राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के प्रतिनिधि शामिल थे, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि संविधान सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करे।संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। इस बैठक में सदस्यों ने संविधान के निर्माण के लिए विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। इसके बाद, कई समितियाँ गठित की गईं जिन्होंने विभिन्न विषयों पर विचार किया और उनके आधार पर अनुच्छेद तैयार किए।

 

4. भारतीय संविधान के लेखक

भारतीय संविधान के लेखन में कई प्रमुख व्यक्तियों का योगदान रहा है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को इस संविधान का "मुख्य वास्तुकार" माना जाता है। वे एक महान समाज सुधारक, विधिवेत्ता और राजनीतिज्ञ थे। उनके अलावा एन. गोपालस्वामी अयंगार, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, और कई अन्य विद्वानों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।डॉ. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि संविधान में सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा हो। उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया। उनके विचारों ने भारतीय समाज में समानता और न्याय की नींव रखी।

 

5. प्रारूप समिति और इसकी भूमिका

प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ था। इस समिति ने संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी संभाली थी, जिसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। प्रारूप समिति ने विभिन्न विषयों पर गहन चर्चा की और विभिन्न धाराओं को शामिल किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संविधान सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा करे।इस समिति में कई अन्य सदस्य भी शामिल थे जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखी। उन्होंने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया और उनके आधार पर अनुच्छेद तैयार किए। प्रारूप समिति ने लगभग दो साल तक कार्य किया और अंततः 4 नवंबर 1948 को संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया।

 

6. प्रेम बिहारी रायजादा का योगदान

भारतीय संविधान की मूल कॉपी को प्रेम बिहारी रायजादा द्वारा इटैलिक शैली में लिखा गया था। उन्होंने इसे बिना किसी शुल्क के लिखा और प्रत्येक पन्ने पर अपना नाम लिखा। उनकी कलात्मकता ने संविधान को एक अद्वितीय रूप दिया, जिससे यह न केवल कानूनी दस्तावेज बन गया बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी बन गया।प्रेम बिहारी रायजादा ने अपने काम से यह साबित कर दिया कि कला और कानून दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। उनका कार्य आज भी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

 

7. संविधान के अलंकरण

संविधान के अलंकरण का कार्य राममनोहर सिंह और नंदलाल बोस द्वारा किया गया था। यह कार्य संविधान के पन्नों को खूबसूरत बनाने के लिए किया गया था। उनके द्वारा किए गए अलंकरण ने इस दस्तावेज़ को एक विशेष पहचान दी और इसे एक कलात्मक रूप प्रदान किया।संविधान की मूल कॉपी में कई चित्रण शामिल हैं जो भारतीय संस्कृति और विविधता को दर्शाते हैं। ये चित्रण न केवल दस्तावेज़ को सुंदर बनाते हैं बल्कि इसके महत्व को भी बढ़ाते हैं।

 

8. धाराओं की संख्या और संरचना

भारतीय संविधान में वर्तमान में 448 धाराएँ हैं, जो 25 भागों में विभाजित हैं। इसकी शुरुआत में केवल 395 धाराएँ थीं, जो समय के साथ बढ़ी हैं। ये धाराएँ विभिन्न विषयों को कवर करती हैं, जैसे कि नागरिक अधिकार, सरकार की संरचना, न्यायपालिका आदि।धाराओं की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण समय-समय पर समाज में आए बदलाव हैं। जैसे-जैसे नई चुनौतियाँ सामने आईं, वैसे-वैसे संविधान में संशोधन किए गए ताकि वह प्रासंगिक बना रहे।

 

9. विभिन्न भाग और उनके अनुच्छेद

संविधान को विभिन्न भागों में विभाजित किया गया है, जिनमें प्रत्येक भाग विभिन्न विषयों को कवर करता है। उदाहरण के लिए:

 

  • भाग I: संघ और उसका क्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)
  • भाग II: नागरिकता (अनुच्छेद 5-11)
  • भाग III: मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-35)
  • भाग IV: नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36-51)
  • भाग IV A: मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51A)
  • भाग V: संघ (अनुच्छेद 52-151)
  • भाग VI: राज्य (अनुच्छेद 152-237)

 

इन भागों में से प्रत्येक भाग अपनी विशेषताओं के साथ महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरण स्वरूप, भाग III मौलिक अधिकारों से संबंधित है जो हर नागरिक को दिए गए हैं जैसे कि समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार आदि।

 

10. महत्वपूर्ण धाराएँ

कुछ धाराएँ विशेष महत्व रखती हैं जैसे:

 

  • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता - यह अनुच्छेद सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समान मानता है।
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार - यह अनुच्छेद हर व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 32: उच्चतम न्यायालय में मौलिक अधिकारों की रक्षा - यह अनुच्छेद नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करने हेतु उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार देता है।

 

ये धाराएँ भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करती हैं और उन्हें न्याय दिलाने में मदद करती हैं।

 

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11. संशोधन प्रक्रिया

संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के तहत निर्धारित की गई है। यह प्रक्रिया संसद द्वारा विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। कुछ संशोधन सरल बहुमत से किए जा सकते हैं, जबकि कुछ के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।संशोधन प्रक्रिया ने यह सुनिश्चित किया है कि संविधान समय के साथ विकसित हो सके ताकि वह बदलते सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश से मेल खा सके। अब तक कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं जो नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों से संबंधित हैं।

 

12. अनुसूचियाँ और उनके महत्व

भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियाँ भी शामिल हैं, जो विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करती हैं। ये अनुसूचियाँ संविधान की धाराओं के साथ मिलकर कार्य करती हैं:

 

  1. पहली अनुसूची: राज्यों और संघ क्षेत्रों की सूची
  2. दूसरी अनुसूची: वेतन और भत्ते
  3. तीसरी अनुसूची: शपथ पत्र
  4. चौथी अनुसूची: राज्यसभा सदस्यों की संख्या
  5. पाँचवी अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजातियों से संबंधित प्रावधान
  6. छठी अनुसूची: असम एवं मेघालय आदि राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों से संबंधित प्रावधान
  7. सातवीं अनुसूची: संघीय ढांचे में शक्तियों का वितरण
  8. आठवीं अनुसूची: भाषाएँ
  9. नौवीं अनुसूची: भूमि सुधार से संबंधित कानून
  10. दसवीं अनुसूची: राजनीतिक दल
  11. ग्यारहवीं अनुसूची: पंचायतें
  12. बारहवीं अनुसूची: नगरपालिकाएं

 

इन अनुसूचियों ने भारतीय कानून प्रणाली को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा इन्हें समय-समय पर संशोधित भी किया गया है ताकि वे प्रासंगिक बने रहें।

 

13. निष्कर्ष

भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ विकसित होता रहा है। इसकी धाराएँ और संरचना देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाती हैं। यह न केवल कानूनी ढांचे का निर्माण करता है बल्कि समाज में समानता, स्वतंत्रता, और न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।संविधान हमें हमारे अधिकारों एवं कर्तव्यों से अवगत कराता है तथा हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनने हेतु प्रेरित करता है। इसलिए इसे समझना हर भारतीय नागरिक के लिए आवश्यक है ताकि वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का सही उपयोग कर सकें।

 

14. संदर्भ और अध्ययन सामग्री

इस खंड में पाठकों को भारतीय संविधान पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें और लेख सुझाए जाएंगे:

 

  1. "The Constitution of India" - B.R. Ambedkar
  2. "We the People: The Story of the Constitution of India" - Nani Palkhivala
  3. "The Indian Constitution: Cornerstone of a Nation" - Granville Austin
  4. "Constitutional Law in India" - H.M.Seervai

 

इन पुस्तकों से पाठक भारतीय संविधान पर गहराई से अध्ययन कर सकते हैं तथा इसके महत्व एवं प्रभाव को समझ सकते हैं।

 

15. भारतीय संविधान का महत्व

संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है; यह भारतीय समाज की विविधता, संस्कृति, और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है। यह सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है तथा सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है।भारतीय संविधान ने देशवासियों को एकजुट करने तथा उन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकार समझाने में मदद की है। इसके माध्यम से हम अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं तथा अपनी आवाज उठा सकते हैं।

 

16. भविष्य की चुनौतियाँ

भारतीय संविधान को लागू करने में कई चुनौतियाँ सामने आती हैं जैसे कि सामाजिक असमानता, आर्थिक विषमताएँ, राजनीतिक विवाद तथा धार्मिक भिन्नताएँ। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं ताकि हम अपने संवैधानिक मूल्यों को बनाए रख सकें।समाज में व्याप्त असमानताएँ तथा भेदभाव हमारे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ जाती हैं। इसलिए हमें मिलकर काम करना होगा ताकि हम एक समतामूलक समाज बना सकें जहाँ हर व्यक्ति को उसके अधिकार मिलें।

 

17. पाठकों से संवाद

पाठकों से आग्रह किया जाएगा कि वे अपने विचार साझा करें कि कैसे भारतीय संविधान उनके जीवन पर प्रभाव डालता है और वे इसके सुधार में क्या सुझाव देते हैं? आपके विचार हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं तथा हमें बेहतर भविष्य बनाने हेतु प्रेरित कर सकते हैं।आपके विचार न केवल व्यक्तिगत अनुभव साझा करेंगे बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करेंगे कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सचेत रहें। इस ब्लॉग पोस्ट ने भारत के संविधान के लेखन की प्रक्रिया, इसके लेखकों, धाराओं की संख्या, और इसके महत्व पर विस्तृत चर्चा प्रस्तुत की है। हमें उम्मीद है कि आप इस जानकारी से लाभान्वित होंगे! यदि आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव हो तो कृपया टिप्पणी करें!

 


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