किसी भी सिचुएशन को हम अच्छी तरह जब ही समझ सकते है जब हम खुद उस सिचुएशन से गुजर रहे हो. विदाई के समय रोना, ये कोई परंपरा नहीं है. रोने का सम्बद्ध दर्द से जुड़ा होता है उस असहनीय पीड़ा से जिससे एक दिन, हर व्यक्ति जुगरता है और इस दर्द को आप और मैं कुछ हद तक महसूस कर सकते है पर पूरी तरह से उससे समझ नहीं सकते क्योकि जिस पर बीतती है वही जनता है की उसने क्या खोया है.
एक लड़की का अपने पूरे जीवनकाल में तीन बार जन्म होता है. पहला जब वो माँ की कोख से जन्म लेती है और इस दुनिया में आती है. दूसरा जब वो शादी करके अपने घर से दूसरे घर जाती है और तीसरा जब वो खुद माँ बनती है.
जन्म के समय जो लाड प्यार उसे अपने परिवार माता पिता भाई बहिन अपनों से मिलता है वही सब कुछ ही उसकी असली दुनिया बन जाता है और वो कभी अपनी इस दुनिया से अलग नहीं होना चाहती है पर समाज के द्वारा बनाये गए नियम संस्कार के चलते उसे धीरे धीरे उसे सिखाया जाता है की उसे पराये घर जाना है शादी करनी है आगे उसे जिम्मेदारी निभाना है और इस तरह उसकी परवरिश करते हुए मानसिक और सामाजिक रूप से उसे तैयार कर दिया जाता है.
शादी एक ऐसा सामाजिक संस्कार है जब एक लड़की अपनी असली दुनिया अपना सब कुछ त्याग कर किसी दूसरे घर जाती है. ये बात वो जानती है पर महसूस नहीं कर पाती है शादी के पुरे समय वो खुश रहती है पर धीरे धीरे जैसे जैसे वो पल बीतता जाता है उसके अंदर हलचल सी पैदा होने लगती है.
इससे पहले की वो कुछ समझ पाये विदाई का वो पल आ जाता है जब सब लोगो की आँखे नम होने लगती है, सबका दिल दर्द से भर जाता है और गाला रुंधने लगता है. अगले ही पल किसी की रोने की आवाज लड़की के अंदर बैठे उस बच्चे को इस बात का एहसास दिला देती है की अब उसे हम सब को छोड़कर जाना है.. बस वही एक पल है जब वो अंदर से खुद को असहाय समझने लगती है और एक बच्चे की तरह बिलक बिलक कर रोने लगती है उसके दिल का दर्द उसकी पलकों पर आ जाता है और जब वो उस दर्द को शिद्दत से महसूस करती है तो उसे बिखरते देर नहीं लगती है, उसका दिल इस बात को जनता है की अब दोबारा अपने माता पिता भाई बहिन अपने सब लोगो से हमेशा के लिए दूर जा रही है. उस असहनीय पीड़ा को वो स्वीकार नहीं कर पाती है. और फूट फूट कर रोने लगती है. अब वो परायी हो गयी है...
अजीब सी बात है इस दुनिया की यारा, जन्म हम सब लेते है पर जीवन का सबसे बड़ा त्याग एक लड़की को ही करना पड़ता है..