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Rinki Pandey

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हमे डर क्यों लगता है?


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इस दुनिया में डर जैसी कोई चीज होती ही नही है जो चीज़ इंसान दिमाग़ में बैठा लेता है वही उसका दिमाग मान लेता है।क्योंकि इंसान डर को अपने दिमाग में बैठा लेता और तब तक बैठाए रहता है जब तक उसका डर का भ्रम दिमाग से खत्म नही हो जाता है। कोई कोई तो रात के अंधेरो से डर जाता है तो किसी दिमाग़ मे यह ख्याल आता है कि भूत होते है उनके दिमाग़ मे भूत के होने का डर बैठ जाता है।

किसी को अकेले पन से डर लगता है तो किसी को रात से डर लगता है और डर का सबसे ज्यादा असर उसके दिमाग पर पड़ता है क्योंकि जितना इंसान सोचेगा उसे डर भी उतना ही लगेगा, कभी -कभी इंसान के दिमाग़ इतना डर बैठ जाता है कि इंसान अपने आप सोचने लगता है कि उसे कोई आवाज़ दे रहा है या फिर किसी से ने उसे आवाज़ दी है या फिर कभी कभी रातो में लगता है कि उसके सामने कोई खड़ा है लेकिन ऐसा कुछ नही होता है जैसे -जैसे इंसान इन सब बातों को अपने के दिमाग़ से निकाल देता है, तो उसका डर खत्म हो जाता है।

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आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताती है कि डर क्या होता है हकीकत बात तो यह होती है डर जैसे कोई चीज नहीं होती है दरअसल इंसान जिस भी चीज को लेकर अपने मन में डर को बैठा लेता है उसी चीज से उसे डर लगने लगती है जैसे कि किसी को अंधेरे में डर लगती है, किसी को अकेले कमरे में रहने से डर लगती है, तो किसी को भूतों से डर लगती है। डर का सीधा संबंध दिमाग से होता है इसलिए आप जितना सोचेंगे अंदर से आपको उतना ही डर लगेगा। इसलिए अपने दिमाग से डर जैसे शब्द को बाहर निकाल कर फेंक देने से डर का जेहन दिल और दिमाग से खत्म हो जाता है।Letsdiskuss


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डर एक तरह का मनोवैज्ञानिक रोग होता है। जब किसी चीज को लेकर आशंका मन में बनी रहती है तो यह डर का रूप ले लेती है। डर के समय मन में घबराहट उच्च रक्तचाप और पसीना आना शुरू हो जाता है। डर भले कुछ ना होता हो लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से यह एक बीमारी का रूप जब घर कर लेता है तो डरने वाले व्यक्ति को समझा पाना मुश्किल होता है। कुछ लोगों को मौत का डर होता है जिस कारण से वह इसी के बारे में सोचते रहते हैं और दुखी हो जाते हैं। भविष्य की चिंताओं को लेकर भी डर की स्थिति नकारात्मक सोच के कारण होती है। इसलिए डर को हल्के में नहीं लेना चाहिए बल्कि इसके कारण को समझदार इसका निवारण करना चाहिए और मनोवैज्ञानिक को दिखा कर उचित सलाह लेनी चाहिए।

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