कहते है न जहाँ हक़ न मिले वह लूट सही जहाँ सच न चले वहाँ झूठ सही | पर वर्तमान मे बिलकुल अलग बात है | वर्तमान मे तो जो छोटा है उसको कभी अपने सामने खड़ा मत होने दो और जो हमसे बड़ा हो उसके झूठ पर भी तारीफ करो | आज का समय तो बस झूठ और फरेब का ही रह गया है | वर्तमान युग ऐसा हो गया है के इंसान को अपने लिए ही समय निकलना मुश्किल है तो आज क्या है ये जानने के लिए समय कहाँ होगा |
23 मार्च को शहीद दिवस माना जाता है | क्योकि 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु इन तीनो को षडयंत्र के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर लटका दिया। भगत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए 23 साल की उम्र में हंसते-हंसते अपने जीवन का बलिदान दे दिया। तभी से हर साल 23 मार्च को इन तीन शहीदों की याद में शहीदी दिवस मनाया जाता है।
भगत सिंह की हिंदुस्तान भर में इतनी लोकप्रियता के अनेक कारणों के साथ एक बड़ा कारण हिंदुस्तानी भाषीय क्षेत्र में उनके और उनके क्रांतिकारी दल की गतिविधियों का उस समय के प्रिंट मीडिया में जबरदस्त प्रचार का भारी योगदान है | 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सांडर्स की हत्या और 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बम फेंके जाने से पहले भारत की जनता को भगत सिंह के बारे में जानकारी बहुत अधिक नहीं थी | लेकिन इन घटनाओं के बाद न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि दुनिया भर में भगत सिंह का नाम गूंजने लगा |